Friday, July 1, 2016

भारत में घोड़ों की मौजूदगी


मोहनजो दारो फिल्म के प्रोमो आते ही क्या-क्या धतकरम चल रहे हैं शायद आपको मालूम नहीं होगा। इस फिल्म के जरिए देश की सेकुलर ताकतों की 'आर्यों' के प्रति छुपी नफरत सामने आ रही है. जबरदस्त षड्यंत्र चल रहा है मित्रों। सर्वविदित है कि मोहनजोदड़ो हमारी सनातन संस्कृति का हिस्सा रही है. षड्यंत्र इस तरह रचा जा रहा है कि लोग फिल्म देखने जाए ही नहीं। इन छुपी हुई ताकतों की फिल्म बनाने वालों से कोई दुश्मनी नहीं है, दुश्मनी है मोहनजोदडो के प्राचीन इतिहास से. मोहनजोदड़ो की खुदाई में जो कुछ मिला उससे जाहिर होता है कि ये सभ्यता 'मूर्ति पूजक' थी. खेती करना जानती थी, चित्रकला और मोहरे बनाती थी. कुल मिलकर ये एक उन्नत सभ्यता रही होगी। षड्यंत्रकारियों को आपत्ति है कि आशुतोष गोवारिकर इस फिल्म में मोहनजोदड़ो को भारतीय संस्कृति से क्यों जोड़ रहे हैं. उनको आपत्ति ये है कि अमेरिका में इंजीनियर रह चुके एन एस राजाराम और नटवर झा की संयुक्त किताब में कहा गया है कि मोहनजोदड़ो वैदिक संस्कृति का पालन करने वाली सभ्यता थी. लोगों के पेट में दर्द इसलिए उठ रहा है क्योंकि फिल्म में आशुतोष गोवारिकर ने इनपुट्स एन एस राजाराम और नटवर झा की किताब (The Deciphered Indus Script: Methodology, Readings, Interpretations)से लिए हैं. सर्वज्ञानी इतिहासकार रोमिला थापर इस किताब का विरोध करती रही है. एन एस राजाराम और नटवर झा दावा करते हैं कि मोहनजोदड़ो की सभ्यता घोड़े पालना सीख गई थी. रोमिला जी दावा ठोंकती है कि 2000 बीसी से पूर्व भारत में घोड़ों की मौजूदगी ही नहीं थी. उनके अनुसार ये तथ्य गलत है. इतिहास की जानकारी रखने वालों से इस बारे में स्प्ष्टीकरण चाहूंगा। दरअसल मोहनजो दारो फिल्म में घोड़ो की सील देखकर प्रगतिशीलों का हलक सूख रहा है. डॉ. आरती मलिक की किताब ' सरस्वती इतिहास' में जिक्र किया गया है कि मोहनजोदड़ो में खुदाई के दौरान कुछ मूर्तियां ऐसी मिली जिनसे जाहिर होता है कि ये सभ्यता शिव पूजक थी. यहां यज्ञ-हवन किए जाते थे. यदि में गलत नहीं हूं तो आने वाले दिनों में फिल्म के प्रति विरोध के स्वर और तीव्र होंगे। ये जानकारी आप लोगों तक पहुंचाना जरूरी थी.

दिल को धड़कता हुआ महसूस कीजिये

Resurgence का अर्थ होता है पुनः उत्थान करना। इंडिपेंडेंस डे:रिसर्जन्स वहीँ से शुरू होती हैं, जहाँ वो 1996 में खत्म हुई थी। पृथ्वी पर पहला एलियन हमला कई शहरों को समूल नष्ट कर देता है। जिस शक्तिशाली मदरशिप को पृथ्वीवासी अदम्य साहस से पराजित कर देते है, वहां से एक सिग्नल सुदूर ब्रम्हांड में बसे उनके ग्रह पर पहुंचा दिया जाता है। सिग्नल को हज़ारों प्रकाशवर्ष दूर पहुँचने में बीस साल लग जाते हैं। इधर बीते बीस साल में पृथ्वीवासी विज्ञान में खासी तरक्की कर चुके हैं। उधर
एलियन क्वीन को पृथ्वी पर तबाही मचाने गए मदरशिप का सन्देश मिल जाता है। रानी इतनी शक्तिशाली है कि पृथ्वी को नष्ट करना उसके लिए खिलौनों से खेलने जैसा है। एक तीन हजार किमी लंबा स्पेसशिप हमारे सौर मंडल की ओर चल पड़ता है। पृथ्वी पर बीस साल पहले छोड़े गए मदरशिप के फंक्शन खुद-ब-खुद काम करने लगते हैं, बंदी बनाए गए एलियन ख़ुशी से नाचने लगते हैं। उन्हें मालूम हो जाता है कि रानी तेज़ी से पृथ्वी की ओर बढ़ रही है। एक अदृश्य कवच में लिपटा स्पेसशिप राडार को चकमा देते हुए पृथ्वी के वायुमंडल में प्रविष्ट हो जाता है। इसके बाद शुरू होती है भयानक तबाही।
निर्देशक रोनाल्ड एमरिक ने इंडिपेंडेंस डे की पहली किश्त का निर्देशन किया था और अब दूसरा भाग लेकर आए हैं। दूसरी फ़िल्म भी पूर्व की तरह मनोरंजक और रोमांचित करने वाली है। कहानी को उन्होंने सिलसिलेवार ढंग से आगे बढ़ाया है। दो घण्टे की ये फ़िल्म आपको सीट से हिलने नहीं देती, पॉपकॉर्न की तरफ आपकी उँगलियाँ बढ़ नहीं पाती क्योंकि वो तो मारे भय के आपस में चिपकी रहती हैं। सबसे जबरदस्त दृश्य वो है जब रानी का शिप पृथ्वी पर उतरता है। शिप के गुरुत्व बल से खींचकर इमारते ढहने का दृश्य जबर्दस्त ढंग से फिल्माया है। पूर्व वाली फ़िल्म के कई किरदार इस फ़िल्म में भी दिखाई देते है इसलिए कहानी का तारतम्य बना रहता है।
फ़िल्म का थ्री डी एक नयापन लिए हुए हैं। अब तक हम जो थ्रीडी देखते आये हैं उनमे छवियाँ बाहर की ओर आती दिखाई देती हैं लेकिन इंडिपेंडेंस डे में ऐसा नहीं होता। इसका त्रि आयामी प्रभाव कुछ ऐसा है कि आप कमरे में बैठे किसी खिड़की से बाहर का दृश्य देख रहे हो। नदी, नदी के पीछे पहाड़, आसमान में उड़ते पक्षी और सबसे पीछे का सूरज। फ़िल्म में दृश्यों को आप अचंभित करने वाली गहराई के साथ देख पाएंगे।
अमेरिका में इस फ़िल्म को उतना रिस्पॉन्स नहीं मिल रहा जितने की उम्मीद है। आलोचक कह रहे हैं कि फ़िल्म विज्ञान सम्मत नहीं बनी है। कई आलोचक इसे अति प्रलयवाद बता रहे हैं। भारत में दर्शकों ने फ़िल्म का स्वागत किया है। वीकेंड में इसे बेहतर दर्शक मिल रहे हैं। जिस ऑडी में मैं फ़िल्म देख रहा था, वहां पुरे दो घण्टे सन्नाटा रहा लेकिन मैंने उत्तेजना से कांपते दर्शकों की साँसों को महसूस किया।
फ़िल्म एक सन्देश देती है कि ब्रम्हांड की गहराइयों से खतरा कभी भी निकलकर सामने आ सकता है। कोई लंबा-चौड़ा उल्का पिंड या कोई शक्तिशाली एलियन प्रजाति हमारे अस्तित्व के लिए खतरा बन सकती है। ऐसे में केवल हमारी जिजीविषा ही हमें बचाएगी।

Thursday, June 23, 2016

आओ खाने की बात करे

भारतीय भोजन पद्धति जितनी प्राचीन है उतनी ही वैज्ञानिक भी. विश्व में सर्वश्रेष्ठ रसोई हम भारतीयों की ही मानी जाती है. कुछ दिन पूर्व केले के पत्ते पर भोजन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. तभी से दक्षिण भारतीय भोजन के बारे में जानने के लिए लगातार पढ़ रहा था. जो जानकारी मिली वो बड़ी रोचक है. केले के पत्ते पर भोजन करने का कारण स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है. जब तैयार भोजन केले के पत्ते पर रखा जाता है तो भोजन में मौजूद विटामिन रिचार्ज हो जाते हैं. आज भी दक्षिण भारत में अधिकांश परिवार केले के पत्ते पर ही भोजन करते हैं यहाँ तक कि होटलों में भी यही इको फ्रेंडली थाली उपयोग में लाई जाती है. इस समुदाय में खाने का पहला कौर घी में डूबा कर खाया जाता है. इसके पीछे का विज्ञान यही है कि इस कौर के बाद गला चिकना हो जाता है और खाने के बीच पानी पीने की जरुरत नहीं पड़ती।
महाराष्ट्र का सांबर और दक्षिण भारत की इडली 
400 साल पहले छत्रपति शिवाजी के सबसे बड़े पुत्र संभाजी (1657-1689) तंजौर पर शासन कर रहे थे. औरंगजेब को 27 साल तक भारत की सत्ता से दूर रखने वाले संभाजी एक बहुत अच्छे रसोइये भी थे. उनके फुर्सत के पल रसोई में पसंदीदा खाना बनाते हुए गुजरते थे. उस रोज भी वे अपनी मनपसंद आमटी बनाने के लिए रसोई में गए और जब दाल में कोकम डालने की बारी आई तो पता चला कोकम तो भंडार गृह में था ही नहीं। तभी उनके खड़े सहायक ने संभाजी के कान में फुसफुसाकर बोला कि दाल में खट्टापन लाने के लिए इसमें ईमली डालकर प्रयोग कर सकते हैं. संभाजी ने वैसा ही किया और उस दिन सांबर का अविष्कार हुआ. इडली हालांकि उससे बहुत पहले ही ईजाद की जा चुकी थी.सन 928 (ए डी) शिवकोटि आचार्य के कन्नड़ प्रलेख में इडली का उल्लेख मिलता है. तो इस तरह दो विभिन्न समुदायों ने मिलकर इडली और सांबर का आविष्कार किया।

Friday, September 11, 2015

मिस्कास्टिंग इसे ही कहते हैं

सुभाष घई की ब्लॉकबस्टर फिल्म हीरो की रीमेक पहले दिन ही सौ करोड़ी दौड़ से बाहर हो चुकी है. हीरो की रीमेक बना रहे निखिल आडवाणी क्यों असफल रहे. सलमान खान प्रोडक्शन की फिल्म औंधे मुंह क्यों गिरी, सूरज पंचोली और आथिया शेट्टी प्रतिभाशाली होते हुए भी क्यों नहीं चमक सके. बहुत सी उम्मीदे थी इस नई जोड़ी से जो ढंग से एक दिन भी फिल्म को नहीं खींच सके. जिस फिल्म ने बरसो पहले फिल्म उद्योग को दो सितारे दिए, उसी फिल्म की रीमेक में ऐसा क्या हुआ कि वो दरकिनार कर दिए गए. 
1983 में शोमैन घई एक अनजान जोड़ी को सामने लाते हैं. एक है जयकिशन श्राफ और दूसरी एक अन्य असफल फिल्म पेंटर बाबू की नायिका मीनाक्षी शेषाद्रि। फिल्म प्रदर्शित होती है और इंडस्ट्री के आकाश पर दो नए सितारे जगमगाने लगते हैं. बाद में दोनों अत्यंत सफल और लम्बी पारी भी खेलते हैं. इसलिए तो कहा जाता है फिल्म उद्योग में आपने प्रवेश किस अदा से किया, वही सबसे महत्वपूर्ण बात होती है. निखिल आडवाणी की हीरो दरअसल बुरी तरह से मिस्कास्टिंग का शिकार रही है. युवा फिल्म मेकर्स को मिस्कास्टिंग को समझने के लिए ये फिल्म जरूर देखनी चाहिए। जब सुभाष घई इस फिल्म की कहानी पर काम कर रहे थे तो उनके दिमाग में मुख्य किरदार के लिए एक ऐसा चेहरा उभर रहा था जो गरीबी की मार से गुजरा हो, जिसने असलियत में सड़क पर रहने का दर्द महसूस किया हो, कई बार गलियां खाई हो. सबसे मुख्य बात, व्यवस्था के प्रति उसके मन में एक आक्रोश वाकई धधक रहा हो. ये सारी बाते उन्हें एक संघर्षरत कलाकार और टपोरी जयकिशन श्राॅफ में नजर आई और इस तरह जैकी श्राफ सितारा बने. चूँकि सूरज पंचोली के मन में कोई आक्रोश नहीं धधक रहा है. वे प्राश्रय प्राप्त युवा अभिनेता हैं, जिन्हे संघर्ष तक नहीं करना पड़ा. हालांकि वे प्रतिभाशाली हैं लेकिन ये किरदार उनके लिए नहीं बना था, वे इस कहानी की जरुरत थे ही नहीं। इसका नतीजा ये रहा कि किरदार की गहराई फिल्म में कहीं नजर ही नहीं आई. ये एक ऐसा सदमा है जिससे इस युवा जोड़ी को उबरने में काफी वक्त लगेगा। इस फिल्म का एक नतीजा ये भी रहा कि एक बात साबित हो गई और वो ये सलमान का आभामंडल और कलाकारों को बॉक्स ऑफिस की निर्मम परीक्षा में सफल नहीं करवा सकता। 

Friday, August 7, 2015

एथन हंट लौट आया है

वो 1996 का साल था जब पहली बार सिनेमाई विश्व का सामना मिशन इम्पॉसिबल फ़ोर्स के तेज़तर्रार एजेंट एथन हंट से हुआ था. रोबिला, स्टाइलिश और जांबांज़ ये सीक्रेट एजेंट अपने हर मिशन में रोमांच की सीमाओं के परे चला जाता है. उसका पांचवा मिशन पक्की मौत की गारंटी है. लेकिन सामने खड़ी मौत को पलटने पर जो मजबूर कर दे, उसी को एथन हंट कहते हैं. लीजिये मिशन इम्पॉसिबल की पांचवी किश्त 'द रोग नेशन' हाजिर है. इस तेज़ गति की रेलगाड़ी में बैठने से पहले अपनी सीट को मजबूती से जकड़ कर बैठना जरुरी है क्योंकि फिल्म के पहले ही सीन में टॉम क्रूज़ की हरकतों के चलते दिल बुलेट ट्रेन की स्पीड सा धड़धड़ाने लगता है. 
 फिल्म की शुरुआत में  टॉम क्रूज़ का असली विमान से लटकने वाला दृश्य फिल्म को किसी दमदार स्पोर्ट्स बाइक की तरह जीरो से सौ की स्पीड पर डाल देता है और फिर ये गति कम नहीं होती। दृश्य दर दृश्य आप कहानी की जकड़ में आते जाते हैं. इस बार मिशन इम्पॉसिबल फ़ोर्स का सामना एक ऐसे आतंकी संगठन ' सिंडिकेट' से है जो मिशन इम्पॉसिबल फ़ोर्स का खात्मा कर दुनिया में आतंक फैला देना चाहता है. सिंडिकेट एक संगठित शक्तिशाली संगठन है जो एक राष्ट्र की तरह काम करता है. फिल्म की कहानी बड़ी दिलचस्प है और एथन से दुगनी ताकत का खलनायक होने से दर्शकों की रूचि और बढ़ जाती है. ढाई घंटे की फिल्म में कई ऐसे लम्हे आते हैं जब हमें एक रोलर कॉस्टर राइड में बैठे होने का अनुभव होता है. 

 साइंस फिक्शन और टॉम क्रूज़ का चोली दामन का साथ है. हॉलीवुड स्टार निकोलस केज की तरह उनकी फिल्मों में भी नई तकनीक काफी दिखाई जाती है. जेम्स बांड की फिल्मों की तरह मिशन इम्पॉसिबल की सारी कड़ियों में तकनीक प्रमुख रूप से उपस्थित रहती है. पहली कड़ी में हमने चुइंगगम विस्फोटक देखा। पिछली कड़ी में दीवार से चिपकने वाले दस्ताने देखे। पांचवी कड़ी में मिशन इम्पॉसिबल फ़ोर्स अत्याधुनिक तकनीक इस्तेमाल कर रही है. किताब की शक्ल का लैपटॉप, जिसके पेज खोलते ही शब्द मिट जाते और मॉनिटर उभर आता है. ऐसी डिजिटल ड्रेस जो शरीर में ऑक्सीजन का लेवल बताती है और मिशन इम्पॉसिबल फ़ोर्स की कारे अब फिंगर प्रिंट से लॉक होने लगी है. इस फिल्म में आप तकनीक के नए आयाम देखेंगे। 

53 साल के हो चुके टॉम क्रूज़ ने पांचवे भाग में भी एथन हंट को वैसा ही प्रस्तुत किया है जैसा वह 1996 में था. इतने लम्बे समय में उम्र के थपेड़े झेलते हुए पांच किश्तों में अपने  किरदार को एक ही लय में पेश करते रहना बड़ी तपस्या का काम है जो उन्होंने किया है. उनके भीतर की एनर्जी को देखते हुए लगता है कि अभी वे इस किरदार को लम्बे समय तक निभाने की क्षमता रखते हैं. फिल्म के मुख्य ताकतवर खलनायक शॉन हैरिस ने अपने किरदार को उचित घृणा और खौफ प्रदान किया है. ये अंग्रेज अभिनेता अपने अंदर असीमित अभिनय क्षमता रखता है. फिल्म 'व्हाइट क्वीन' में अपने अभिनय से सबको प्रभावित कर चुकी रेबेक्का फर्ग्युसन वो तीसरी कलाकार हैं, जिन्होंने बेहद खूबसूरती के साथ अपने किरदार को निभाया। 

मिशन इम्पॉसिबल की हर कड़ी में एक चोरी का सीक्वेंस जरूर होता है. एथन वहां से जानकारी चुराता है जहाँ से हवा भी नहीं गुजर सकती। पांचवी कड़ी में एथन को एक ऐसी तिजोरी में घुसना है जो पूरी तरह पानी में डूबी और तकनीकी रूप से सुरक्षित है. ये सीन फिल्म का मास्टर सीन है. ये दावा है कि लगभग पांच मिनट के इस सीक्वेंस में आप पलके भी नहीं झपका पाएंगे। रोमांच और तकनीक पसंद करने वाले दर्शक टॉम क्रूज़ की इस बुलेट ट्रेन का टिकट कटा सकते हैं. 

Monday, July 27, 2015

मजबूत और नेक हाथों की कहानी : 'मांझी-द माउंटेन मैन'

कल आने वाली फिल्म 'मांझी-द माउंटेन मैन' का प्रोमो देख रहा था तो मन में विचार आया कि केतन मेहता और नवाजुद्दीन सिद्दीकी जैसे दो घातक रसायन यदि मिल जाए तो क्या घटित होगा। एक बेजोड़ निर्देशक और बेमिसाल अदाकार का जोड़ जब होता है तो कभी इतिहास बनते हैं और कभी हादसे होते हैं.
प्रोमो की एक झलक बता रही है कि ये फिल्म अंततः एक महान नायक दशरथ मांझी को उनका उचित सम्मान दिलाएगी, जो उन्हें जीते जी मिल नहीं पाया। एक बेहतर स्टोरीटेलर समझे जाने वाले केतन मेहता ने इस प्रोजेक्ट के लिए खासी मेहनत की है. मेरा ऐसा अनुमान है कि ये फिल्म चार मुख्य बातों के लिए जानी जायेगी। पहली दशरथ मांझी जैसे दृढ़ निश्चयी व्यक्तित्व के बारे में युवा पीढ़ी जानेगी। मांझी के इस दुनिया को दिए योगदान के बारे में जानकर उनके मन में इस महानायक के लिए आदर का भाव उपजेगा। दूसरा ये फिल्म नवाज को वो मुकाम दे जायेगी, जिसकी उन्हें जरुरत है. तीसरा केतन के लिए ये फिल्म एक बिग कमर्शियल सक्सेस हो सकती है. चौथा केंद्र में सरकार बदलने के बाद फिजा में अजीब सा उथलपुथल का माहौल है. ऐसा लग रहा है कि अवाम का हौसला पस्त हो रहा है. दशकों से सत्ता के चाबुक सहती आई अवाम कुछ देर के लिए उठकर खड़ी हुई ही थी कि फिर चाबुक चलते महसूस होने लगे है.
दशरथ ने अपनी पत्नी  फाल्गुनी देवी को खो देने के बाद एक भरेपूरे पहाड़ से टकराने का साहस किया। दिन-रात किए परिश्रम के कारण 1960  में शुरु किया यह असंभव लगने वाला काम 1982  में पूरा हुआ. उन्होंने  360  फुट लंबा, 25  फुट ऊँचा और 30  फुट चौडा रास्ता बनाया. इससे गया जिले में के आटरी और वझीरगंज इन दो गॉंवों में का अंतर दस किलोमीटर से भी कम रह गया. किसी और के घर का सदस्य इलाज के अभाव में न मर जाए इसलिए ये शख्स एक पहाड़ से बाइस साल तक लड़ता रहा. आज देश के नागरिक भी अपने सामने मुसीबतों का पहाड़ देख रहे हैं. फिल्म के प्रदर्शित होने की सिचुएशन एकदम परफेक्ट है. फिल्म का इसी समय प्रदर्शित होना भी तक़दीर में बदा था.
इस फिल्म की कमर्शियल सक्सेस कोई मायने नहीं रखती। ये तो बाइस साल औरो की खातिर पत्थर तोड़ने वाले उन हाथों पर फेंका गया एक फूल है बस और कुछ नहीं। उन मजबूत और नेक हाथों की हरकत 2007 में हमेशा के लिए थम गई. दशरथ मांझी चला गया. पहाड़ को बोलकर चुनौती देने वाला मांझी रास्ता बनाकर चला गया. मुझे पूरा यकीन है कि झक्की, सनकी और धुन का पक्का मांझी हम नवाज में देख पायेंगे, पत्थरों से उड़ती किरचें अपने चेहरे पर महसूस कर पाएंगे। उस गरीब मजदुर के जीवन से कुछ प्रेरणा ले पाएंगे।





Friday, July 17, 2015

भारतीय दर्शक मामू नहीं है

 सलमान खान एक ऐसा सितारा बन चुके हैं कि अब उनकी कोई भी फिल्म फ्लॉप होना लगभग नामुमकिन सा लगता है. फिल्म वांटेड से शुरू हुई 'सलमान मेराथन' पिछली फिल्म किक तक निर्बाध चलती रही है. उनके प्रशंसकों को पूरी उम्मीद थी कि बजरंगी भाईजान से सलमान अपने पुराने कीर्तिमान ध्वस्त कर देंगे। शुक्रवार की सुबह प्रशंसकों की यह उम्मीद पहला शो ख़त्म होने के बाद टूट गई. सलमान के कटटर प्रशंसक ढाई घंटे तक गला फाड़ नारे लगाने के बाद बुझे हुए चेहरों के साथ बाहर निकलते दिखाई दिए. इसका मतलब ये नहीं है कि फिल्म फ्लॉप हो जायेगी लेकिन इसका मतलब ये जरूर है कि बाहुबली का बैरियर लाँघ पाना बजरंगी के बस की बात नहीं है.

कबीर खान जैसा प्रतिभाशाली निर्देशक जब ऐसी बचकानी कहानी चुनता है तो बड़ी हैरानी होती है. पवन कुमार चतुर्वेदी(सलमान खान) को एक छह साल की बच्ची मिली है जो बोल नहीं सकती। बजरंगी के कटटर हिन्दू परिवार को जब मालूम होता है कि ये बच्ची पाकिस्तानी है तो वे उसे फ़ौरन घर से बाहर करने का हुक्म सुना देता है. बजरंगी कानूनन बच्ची को पाकिस्तान नहीं पहुंचा पाता तो खुद ही गैर क़ानूनी ढंग से सरहद पार करने के लिए चल पड़ता है. पाकिस्तान में भी बजरंगी को सारे ही उदार लोग मिलते हैं जो उसकी मदद करते जाते हैं. उदारवादी फौजी, उदारवादी पत्रकार और उदारवादी पुलिस अधिकारी की मदद से बजरंगी अपना मिशन पूरा कर लेता है.

इस बार फिल्म में सलमान खान की फाइट तो लार्जर देन लाइफ नहीं थी लेकिन इसके सारे चरित्र लार्जर देन लाइफ हैं. एक फौजी जो दुश्मन को सामने देखकर भी गोली नहीं चलाता। एक पुलिस अधिकारी जो अपनी गिरफ्तारी तय देखकर भी बजरंगी को सरहद पार भेजने पर आमादा है. निर्देशक शायद दिखाना चाहता था कि गदर में सनी पाजी के हैडपम्प उखाड़ने के बाद पाकिस्तान इस हद तक सुधर चुका है. बजरंगी बच्ची को पाकिस्तान में लेकर ऐसे घूमता है जैसे घर के बाजू वाले पार्क में तफ़रीह करने को निकला हो. यहाँ हम स्क्रीनप्ले में गंभीर खामियां देखते हैं. सलमान और छोटी बच्ची की केमिस्ट्री पूरी फिल्म पर हावी रहती है. करीना के साथ उनके प्यार को वैसा नहीं उपजाया गया जैसी जरुरत थी. फिल्म में एक ही कलाकार है जो दर्शक को थोड़ा-बहुत सीट पर बांधे रहता है और वो है नवाजुद्दीन सिद्दीकी का किरदार। पाकिस्तान के एक पत्रकार की भूमिका उन्होंने बड़े विश्वसनीय ढंग से निभाई है. मुझे तो वो सलमान से कहीं बेहतर लगे.

सलमान खान की दूसरी और विराट पारी वांटेड फिल्म से शुरू हुई थी. इसके बाद से उनकी छवि एक ऐसे दरियादिल योद्धा की बन गई थी जो अविजित है , जिसके आगे कोई नहीं टिक सकता। भारत में  सलमान के प्रशंसक इस कदर बावले हैं कि अपने प्रिय कलाकार को स्क्रीन पर मार खाते हुए नहीं देख सकते। बजरंगी भाईजान में उनका फकत एक एक्शन सीक्वेंस है जो भारत में होता है. जब कहानी पाकिस्तान में प्रवेश करती है तब बजरंगी गांधी की तरह अहिंसक नज़र आने लगता है. भारतीय दर्शक का मनोविज्ञान कुछ ऐसा है कि वे अपने हीरो को पाकिस्तान से पिटते हुए कतई नहीं देख पाते हैं. और बजरंगी भाईजान तो पाकिस्तान की धरती पर पिटते ही रहते हैं. यही वो इकलौता कारण है जिसने फिल्म को खतरे में डाल दिया है.

पुराने ज़माने में हम कई फिल्मों में देखते थे कि किसी दुर्घटना के चलते हीरो की बरसों से अंधी माँ की आँखों की रौशनी लौट आती है या किसी बेहद मार्मिक सीन के बाद हीरोइन की गूंगी बहन अचानक बोलने लग पड़ती है. बजरंगी भाईजान के अंत में भी बच्ची की आवाज लौट आती है और उसके मुंह से आवाज आती है 'बजरंगी मामा'. कमाल हो कबीर खान आप, दर्शकों को भी मामा बना ही दिया आपने।