Saturday, November 8, 2014

नई पनाहगाह खोजने का सफर 'इंटरस्टेलर'

महान भौतिक वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने कुछ समय पूर्व कहा था कि आज से  कुछ हजार साल बाद पृथ्वी खुद मानव सभ्यता के विनाश का कारण बन जाएगी। इससे पहले कि हमारा अस्तित्व खतरे में पड़े, हमें सुदूर अंतरिक्ष में अपना नया घर खोजना ही होगा। फिल्म निर्देशक क्रिस्टोफर नोलान की साइंस फिक्शन फिल्म इंटरस्टेलर हॉकिंग के इसी विचार से पनपे सवालों का जवाब खोजती नजर आती है। 

कहानी
पृथ्वी पर भयंकर सूखे और अनाज की कमी के कारण मानव जाति के अस्तित्व पर संकट आ गया है। धूलभरी आंधियां फसलों को बरबाद कर रही है। जब मानव सभ्यता अपने अंत के करीब होती है, ठीक उसी दौरान एक अंतरिक्ष पॉयलट कूपर को सुदूर ब्रम्हांड से पृथ्वी और मानव सभ्यता को बचाने के लिए संकेत मिलते हैं। इस अनजानी सभ्यता से ये भी संकेत मिलते हैं कि सौरमंडल में एक वर्म होल खुला है, जिसकी यात्रा करने के बाद मानव सभ्यता को विलुप्त होने से बचाने का उपाय मिल सकता है। कूपर इस असंभव सी लगने वाली यात्रा को पूरा करने निकल पड़ता है। समस्या ये भी है कि सुदूर अंतरिक्ष में समय का पैटर्न बदल जाने के कारण कूपर और उसकी टीम यदि एक घंटा खर्च करेगी तो उधर पृथ्वी पर छह साल बीत चुके होंगे क्योंकि ये यात्रा एक सितारे से दूसरे सितारे की होगी। 
निर्देशक क्रिस्टोफर नोलान की यह फिल्म अंतरिक्ष फिल्म ग्रेविटी की अगली कड़ी कही जा सकती है। बेहद खतरनाक लेकिन बेहद जरूरी हमारे अंतरिक्ष अभियान आगे जाकर क्या रूप लेंगे, इसकी भी एक झलक फिल्म में दिखाई दे जाती है। निर्देशक ने अपनी कहानी का फैलाव बहुत खूबसूरत ढंग से किया है। लगभग तीन घंटे की ये फिल्म रोमांच से भरपूर है।
 स्पेशल इफेक्ट्स का सही जगह इस्तेमाल फिल्म की भव्यता को और बढ़ाता है। ब्लैक होल में प्रवेश करने वाला दृश्य देखते हुए हम अपनी सीट पर सिमट जाते हैं और अपनी धडक़नों को तेज होता महसूस करते हैं। फिल्म बखूबी बताती है कि अपने लिए इस यूनिवर्स में नया घर ढूंढना कितनी खतरनाक चुनौती है। वह दृश्य बहुत मार्मिक है जब एक सितारे की लंबी यात्रा करके लौटा कूपर 124 बरस का हो चुका है। वह जब  रवाना हुआ था तो बेटी मात्र 15 साल की थी और आज लौटा है तो बेटी बूढ़ी हो चुकी है और मौत की कगार पर है। अंतरिक्ष में तेजी से व्यतीत हुए समय ने कूपर को बूढ़ा नहीं होने दिया है। ब्रम्हांड अबूझ पहेली है । अपनी असीम सीमाओं में ये वक्त को भी अपनी गति बदलने पर मजबूर कर देता है।



Thursday, November 6, 2014

बनारस के घाट पर जादू के दीप जले


 जिंदगी में पहली बार डायनमो को हिस्ट्री टीवी के शो पर देखा था और उसके बाद उनको कभी नहीं भूला। उस दिन डायनमो ने पानी के एक कृत्रिम झरने पर हाथ रखकर उसे बर्फ में बदलने पर मजबूर कर दिया था। ब्रिटेन के यार्कशायर के निवासी स्टीवन फ्रायेन उर्फ डायनमो आज अपने असंभव जादू के दम पर जादू के विश्व इतिहास में संभवत हुडिनी के समकक्ष आ खड़े हुए हैं। हिस्ट्री चैनल पर आने वाले शो मैजिशियन इंपासिबल के माध्यम से वे सारी दुनिया में जाने जाते हैं। वे स्टेज पर नहीं बल्कि राह चलते लोगों के बीच जादू दिखाते हैं। एक जादूगर के लिए स्पांटेनियस होना शायद सबसे बड़ा चैलेंज होता है। हैरानी इस बात की होती है कि एक दुबला-पतला नौजवान जेब में हाथ डाले किसी भी बाजार में प्रकट हो जाता है और ऐसे जादू दिखा जाता है जो स्टेज पर सेटअप के साथ दिखाया जाना भी मुमकिन नहीं है।  
डायनमो बीते होली के त्यौहार पर भारत आए और ये देखकर हैरान रह गए कि मोदी, धोनी और सलमान के इस देश में भी इतनी तादाद में लोग उन्हें पहचानते हैं। मुंबई की सडक़ों पर गुजरते हुए आसपास के लोग उन्हें पहचान कर अभिवादन करते और यह सभ्य युवा जादूगर अपने किसी प्रशंसक को जवाब देना नहीं भूलता। 
अपने मुंबई प्रवास में डायनमो नेे  पॉश इलाकों को छोडक़र धारावी और भिंडी बाजार जैसे इलाकों में असली भारत को खोजने की कोशिश की। यहां पढऩे वाले इसे उन फिल्मकारों की तरह न लें जो भारत की गरीबी ही दुनिया को दिखाना चाहते हैं। डायनमो चाहे अमेरिका में हो या ब्राजील में, अपने शो के लिए गरीब बस्तियों में ही जाते है। धारावी में वे पुराने अखबार बेचने वाली रद्दी की एक बड़ी दूकान में जा पहुंचे और अखबार के कुछ टुकड़े उठाए और पलभर में उन्हें जोडक़र पढऩे लायक बना दिया। यहीं नजदीक में धोबी घाट पर उन्होंने एक गंदे कपड़े को देखते-देखते एक खूबसूरत साड़ी में बदल दिया। मछुआरों के एक गांव में डायनमो ने कुछ बच्चों को पानी के बुलबले उड़ाते देखा। उन्होंने एक बुलबुला अपनी हथेली पर रख लिया और अगले ही पल वो बुलबुला एक ठोस गेंद में बदल चुका था।  कई बार इंटरव्यू के दौरान डायनमो ने कहा है कि आज के दौर में लोग बेहद तनाव की जिंदगी गुजारते हैं और यदि उन्हेें कुछ देर सबकुछ भूलकर चहकने का मौका मिले तो इससे बेहतर और क्या हो सकता है। 
अपने भारत के सफर का समापन उन्होंने वाराणसी में होली खेलकर किया। बनारस की भीड़ भरी गलियों का सम्मोहन डायनमो को खूब भाया। पहली बार उन्होंने जाना कि भारत की उत्सवप्रियता क्या है। होली की शाम बनारस के घाट पर उन्होंने अपना सबसे बड़ा जादू दिखाया। उन्होंने घाट पर अपने हाथ से इशारा किया और पहले से गंगा में तैर रहे सैकड़ों बुझे हुए दीप प्रकाशवान हो उठे। घाट पर मौजूद लोगों के लिए ये अनुभव आल्हादित करने वाला रहा। इन दीपों की रोशनी में उस दिन बनारस के लोगों ने एक ऐसे प्रेमदूत को देखा, जो अपने जादू से लोगों में प्रेम और उम्मीद बांट रहा है। भगवान जाने परदे के पीछे से तुम क्या करते हो डायनमो लेकिन वाकई तुम असंभव हो।