महान भौतिक वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने कुछ समय पूर्व कहा था कि आज से कुछ हजार साल बाद पृथ्वी खुद मानव सभ्यता के विनाश का कारण बन जाएगी। इससे पहले कि हमारा अस्तित्व खतरे में पड़े, हमें सुदूर अंतरिक्ष में अपना नया घर खोजना ही होगा। फिल्म निर्देशक क्रिस्टोफर नोलान की साइंस फिक्शन फिल्म इंटरस्टेलर हॉकिंग के इसी विचार से पनपे सवालों का जवाब खोजती नजर आती है।
कहानी
पृथ्वी पर भयंकर सूखे और अनाज की कमी के कारण मानव जाति के अस्तित्व पर संकट आ गया है। धूलभरी आंधियां फसलों को बरबाद कर रही है। जब मानव सभ्यता अपने अंत के करीब होती है, ठीक उसी दौरान एक अंतरिक्ष पॉयलट कूपर को सुदूर ब्रम्हांड से पृथ्वी और मानव सभ्यता को बचाने के लिए संकेत मिलते हैं। इस अनजानी सभ्यता से ये भी संकेत मिलते हैं कि सौरमंडल में एक वर्म होल खुला है, जिसकी यात्रा करने के बाद मानव सभ्यता को विलुप्त होने से बचाने का उपाय मिल सकता है। कूपर इस असंभव सी लगने वाली यात्रा को पूरा करने निकल पड़ता है। समस्या ये भी है कि सुदूर अंतरिक्ष में समय का पैटर्न बदल जाने के कारण कूपर और उसकी टीम यदि एक घंटा खर्च करेगी तो उधर पृथ्वी पर छह साल बीत चुके होंगे क्योंकि ये यात्रा एक सितारे से दूसरे सितारे की होगी।
निर्देशक क्रिस्टोफर नोलान की यह फिल्म अंतरिक्ष फिल्म ग्रेविटी की अगली कड़ी कही जा सकती है। बेहद खतरनाक लेकिन बेहद जरूरी हमारे अंतरिक्ष अभियान आगे जाकर क्या रूप लेंगे, इसकी भी एक झलक फिल्म में दिखाई दे जाती है। निर्देशक ने अपनी कहानी का फैलाव बहुत खूबसूरत ढंग से किया है। लगभग तीन घंटे की ये फिल्म रोमांच से भरपूर है।
स्पेशल इफेक्ट्स का सही जगह इस्तेमाल फिल्म की भव्यता को और बढ़ाता है। ब्लैक होल में प्रवेश करने वाला दृश्य देखते हुए हम अपनी सीट पर सिमट जाते हैं और अपनी धडक़नों को तेज होता महसूस करते हैं। फिल्म बखूबी बताती है कि अपने लिए इस यूनिवर्स में नया घर ढूंढना कितनी खतरनाक चुनौती है। वह दृश्य बहुत मार्मिक है जब एक सितारे की लंबी यात्रा करके लौटा कूपर 124 बरस का हो चुका है। वह जब रवाना हुआ था तो बेटी मात्र 15 साल की थी और आज लौटा है तो बेटी बूढ़ी हो चुकी है और मौत की कगार पर है। अंतरिक्ष में तेजी से व्यतीत हुए समय ने कूपर को बूढ़ा नहीं होने दिया है। ब्रम्हांड अबूझ पहेली है । अपनी असीम सीमाओं में ये वक्त को भी अपनी गति बदलने पर मजबूर कर देता है।