Saturday, January 24, 2015

बेबी एक सलाम है

आतंकवाद की सिगड़ी को जब से फेसबुक और ट्विटर की हवा लगी है, ये जंगल में लगी बौराई आग की तरह हो गया है. अब सरहदों की दीवारे इसे रोक नहीं पाती। तकनीक की शह पाकर आतंकवाद का दैत्य जैसे मानवता को निगलने पर आमादा हो गया है. नीरज पांडे की तीसरी फिल्म बेबी आतंकवाद के इसी नए स्वरुप को दिखाती है. एक बेहद दिलचस्प फिल्म के जरिये निर्देशक हमें बताता है कि विश्वभर में आतंक से मुकाबला करने वाले हमारे रक्षक किस कदर मुश्किल भरी ज़िन्दगी बिताते हैं. जब हम चैन से सोते हैं तो जाग रहा होता है एक परिवार, जिसका एक अहम सदस्य किसी दूसरे देश में गोलियों की बौछार के बीच आतंक के दैत्यों से मुकाबला कर रहा होता है. 

अजय एक दोहरी ज़िंदगी जी रहा है. एक तरफ वो एंटी टेररिस्ट स्कवॉड का स्पेशल आफ़िसर है तो दूसरी ओर दो बच्चों का पिता भी है. पत्नी को बताता है कि वो एक कंपनी में काम करता है. विदेश में एक ऑपरेशन में उसे मालूम होता है कि पाकिस्तान से संचालित हो रहा एक आतंकी संगठन भारत में कैद एक आतंकी बिलाल खान को किसी खास काम के लिए फरार करवाना चाहता है. जब तक ये खबर अजय तक पहुँचती है, बिलाल खान फरार हो जाता है. एटीएस चीफ फ़िरोज़ खान और अजय बिलाल को वापस लाने के लिए एक गुप्त ऑपरेशन की योजना बनाते है, जिसे बेबी नाम दिया जाता है. निर्देशक ने इस कहानी को इस कदर अंजाम तक पहुँचाया है कि दर्शक जिज्ञासा के साथ अपनी कुर्सी से चिपका रहता है. अदाकारी, निर्देशन और स्क्रीनप्ले के मामले में बेबी बेजोड़ है. हाँ फिल्म का लम्बापन और एक सोचा समझा क्लाइमेक्स सम्पूर्ण प्रभाव में डेंट मारता है. निर्देशक ने किरदारों से देशभक्ति की बड़ी-बड़ी बाते नहीं कहलवाई हैं बल्कि उनके एक्शन पर ज्यादा ध्यान दिया है. अजय की भूमिका में अक्षय कुमार पूरी तरह उतर गए हैं. एक ऐसा ऑफिसर जिसका चेहरा बेहद भावहीन है, जो ज्यादा बोलना पसंद नहीं करता। ये इतना जोशीला अफसर है कि सफलता का अनुमान यदि एक प्रतिशत हो तो भी जान जोखिम में डालने के लिए तैयार है. उसका खाली वक्त पत्नी और बच्चों से घर न आने की माफ़ी मांगते हुए ही बीतता है. अक्षय के अभिनय में बहुत परिपक्वता दिखाई देती है, जब वे नीरज के निर्देशन में काम करते हैं. अनुपम खेर का फिल्म में प्रवेश इंटरवल के बाद होता है लेकिन अपने अनुपम अभिनय के जरिये वे छाप छोड़ने में कामयाब रहते हैं. के के मेनन, रशीद नाज़, जमील खान  और सुशांत सिंह ने फिल्म में निगेटिव किरदार निभाये है. इनमे जमील खान ने अपने अभिनय से हैरान किया है. तौफ़िक का किरदार उन्हें एक नई ऊंचाई दिलवा सकता है. सुशांत सिंह वसीम खान के किरदार में खूब जमे हैं. अफ़सोस है कि के के मेनन का किरदार उतना डेवलप नहीं किया गया. 

26  जनवरी से पूर्व बेबी का प्रदर्शन उन अज्ञात नायकों को ठोंका गया सैल्यूट है, जो ख़ामोशी से आतंकवाद के खिलाफ लड़ रहे हैं. उनकी कोई फोटो अखबार में नहीं छपती, वे कहीं इंटरव्यू के लिए नहीं बुलाए जाते और न हमारे क्रिकेट खिलाडियों की तरह उन्हें देशसेवा के बदले सम्मान दिया जाता है. नीरज पांडे की ये फिल्म उन अज्ञात नायकों के लिए एक आदर पत्र है, जो रोज यही सोचकर आतंकवाद से लड़ने के लिए घर से निकलते हैं कि ये उनका आखिरी दिन है. बेबी एक सलाम है. 



Saturday, January 17, 2015

प्रतिशोध की कहानी है 'आई'

जिंदगी में हम सभी एक ना एक दिन खुद को प्रतिस्पर्धा के ट्रेक पर खड़े पाते हैं और यह भी अनुभव करते हैं कि कई प्रतियोगी ईर्ष्या के चलते हमें छल-कपट से हराने की कोशिश करते हैं. उनके हारने का डर साजिश को जन्म देता है. ऐसी साजिश जिसके तीखे पंजों की कैद में आकर कई हुनरमंद दम तोड़ देते हैं. शुक्रवार को प्रदर्शित हुई तमिल फिल्म 'आई'  एक ऐसे ही प्रतिभाशाली युवा की कहानी कहती है जिसे ईर्ष्या के जहरीले नाग डंस लेते हैं. भव्य फिल्मे बनाने वाले फिल्म निर्देशक शंकर ने 'आई' के माध्यम से  अपने करियर का सबसे डारकेस्ट सिनेमा  पेश किया है. ये एक ऐसा सिनेमा है, जिसे  बनाने की  हिंदी फिल्म निर्देशक कल्पना भी नहीं कर सकते क्योंकि उनकी कल्पना शक्ति केवल विभिन्न भाषाओं की कामयाब फिल्मों की रीमेक बनाने पर ही काम कर पाती है. 

कहानी
पहलवानी शरीर वाले लिंगेसन का एक ही सपना है कि वो बॉडी बिल्डिंग में मिस्टर तमिलनाडु का ख़िताब हासिल करे. गरीब लिंगेसन अपनी इच्छाशक्ति के बलबूते ये मुकाम हासिल करता है और दिया (एमी जैक्सन) का साथ पाकर एक बेहद सफल सुपर मॉडल बन जाता है. झोपड़पट्टी से अाये लिंगेसन की ये कामयाबी कुछ लोगों को रास नहीं आती और वे लिंगेसन के शरीर में धोखे से बेहद खतरनाक वायरस इंजेक्ट कर देते हैं. धीमे-धीमे लिंगेसन के शरीर में फोड़े होने लगते हैं, उसके शरीर का आकार बदलने लगता है, डॉक्टर बताते हैं कि उसे भयानक लाइलाज बीमारी  काइफोसिस हो गई है और वो तेज़ी से बूढ़ा होता जा रहा है. चुनौतियों से कभी न हारने वाला लिंगेसन प्रण लेता है कि वो इस साजिश का प्रतिशोध लेगा। 

 ऐसा भी नहीं कि निर्देशक शंकर की इस फिल्म में कोई कमियां नहीं है. फिल्म की अत्याधिक लम्बाई और एक मुख्य किरदार का अभिनय कमज़ोर होना इसके सम्पूर्ण प्रभाव को जरूर कम करते हैं लेकिन इसके बावजूद ये शंकर साबित करते हैं कि वे फिल्म उद्योग के एक बेहतरीन स्टोरी टेलर हैं. फिल्म की सबसे बड़ी खूबी है कि सस्पेंस बनाये रखा गया है. फ्लेशबैक वर्तमान कहानी के साथ ही चलता है. इस अभिनव प्रयोग को समझने में दर्शक को थोड़ा वक्त लगता है लेकिन कुछ देर बाद वो समझ जाता है कि फ्लेशबैक और वर्तमान कहानी को किस तरह पिरोया गया है. लगभग सौ करोड़ की लागत से बनी 'आई' को भव्य बनाने के लिए बेहतरीन सिचुएशनल स्पेशल इफेक्ट्स और विदेशो की सुन्दर दृश्यावली का इस्तेमाल किया गया है. आपको बताते चले कि इसके स्पेशल इफेक्ट्स विजुअल इफेक्ट डिजाइनर वी. श्रीनिवास मोहन ने तैयार किये हैं, जिनका प्रभाव हॉलीवुड से किसी मायने में कमतर नहीं हैं. उन्होंने इसके लिए न्यूज़ीलैंड की वेटा वर्कशॉप का मार्गदर्शन लिया है. शंकर की इस फिल्म का मुख्य केंद्रबिंदु प्रतिशोध ही है, जिसके इर्दगिर्द उन्होंने  अपना संसार रचा है. आम दर्शकों के लिए कुछ एक्शन सीक्वेंस डाले गए हैं, जो सांसे रोक देते हैं. चीन में बीएमडब्ल्यू सायकलों वाला एक्शन दृश्य और उपेन पटेल के साथ लड़ाई बहुत दिलचस्प ढंग से फिल्माई गई है. इसके अलावा चीन की सुन्दर दृश्यावली कुछ वक्त के लिए फिल्म का मिज़ाज़ बदल देती है. सिनेमेटोग्राफर पी सी श्रीराम ने फिल्म के इस सेक्शन को किसी चित्रकार की सुन्दर पेंटिंग की तरह प्रस्तुत किया है. निःसन्देह फिल्म की सबसे बड़ी ताकत मुख्य किरदार विक्रम का उत्कृष्ट अभिनय है. उनके किरदार में कई तरह के शेड्स हैं और वे हर शेड को स्वाभाविकता के साथ निभाते हैं. एक पहलवान, एक मॉडल, एक रोगी को उन्होंने मनोयोग से प्रस्तुत किया है. एक दृश्य में उन्होंने कमाल ही किया है. लिंगेसन पर बीमारी  का असर दिखने लगा है. वह एक बड़ी सी टोपी लगाकर छुपते-छुपाते डॉक्टर के पास पहुंचा है.  वह डॉक्टर को बताता है कि अब उसके बाल झड़ने लगे हैं. दांत गिर रहे हैं और शरीर फोड़ों से भर गया है. इस दृश्य में जितना कमाल विक्रम का है उतना ही मेकअप आर्टिस्ट ने भी दिखाया है. इस मास्टर सीन के लिए निर्देशक और विक्रम को सैल्यूट मारने का मन करता है. इस रिवेंज स्टोरी में कुछ कमियां अखरती है जैसे दिया के किरदार के लिए एमी जैक्सन जैसी अनुभवहीन कलाकार को लिया जाना। इस किरदार के लिए दीपिका पादुकोण से भी संपर्क किया गया था लेकिन उन्होंने काम करने से असहमति जताई थी. यदि वे इस किरदार में होतीं तो निश्चित ही फिल्म का सम्पूर्ण प्रभाव  गहरा और मारक होता। 

हमारे फिल्म समीक्षकों ने 'आई' को फकत दो सितारों से नवाज़ा है. शुक्रवार को प्रदर्शित हुई भूषण पटेल निर्देशित भट्ट प्रोडक्शन की 'अलोन', रितेश मेनन द्वारा निर्देशित प्रकाश झा प्रोडक्शंस की 'क्रेज़ी कुक्कड़ फैमिली' को दर्शक नहीं मिल रहे हैं लेकिन 'आई' जबरदस्त दर्शक बटोर रही है. दक्षिण की फिल्मों को दरकिनार कर देना, मुंबई फिल्म उद्योग का बरसों पुराना शगल रहा है.  ऐसा शंकर की फिल्म हिंदुस्तानी और नायक के साथ भी हुआ था. उस दौरान इन दोनों फिल्मों को समीक्षकों ने औसत दर्जे का बताया था लेकिन इन फिल्मों ने खूब भीड़ जुटाई थी. यदि आपमें अत्यधिक लम्बी फिल्म देखने का धीरज है तो आपको 'आई' में बहुत कुछ नया और बेहतर देखने को मिलेगा। और हाँ बच्चों को इस फिल्म से दूर ही रहना चाहिए।