आतंकवाद की सिगड़ी को जब से फेसबुक और ट्विटर की हवा लगी है, ये जंगल में लगी बौराई आग की तरह हो गया है. अब सरहदों की दीवारे इसे रोक नहीं पाती। तकनीक की शह पाकर आतंकवाद का दैत्य जैसे मानवता को निगलने पर आमादा हो गया है. नीरज पांडे की तीसरी फिल्म बेबी आतंकवाद के इसी नए स्वरुप को दिखाती है. एक बेहद दिलचस्प फिल्म के जरिये निर्देशक हमें बताता है कि विश्वभर में आतंक से मुकाबला करने वाले हमारे रक्षक किस कदर मुश्किल भरी ज़िन्दगी बिताते हैं. जब हम चैन से सोते हैं तो जाग रहा होता है एक परिवार, जिसका एक अहम सदस्य किसी दूसरे देश में गोलियों की बौछार के बीच आतंक के दैत्यों से मुकाबला कर रहा होता है.
अजय एक दोहरी ज़िंदगी जी रहा है. एक तरफ वो एंटी टेररिस्ट स्कवॉड का स्पेशल आफ़िसर है तो दूसरी ओर दो बच्चों का पिता भी है. पत्नी को बताता है कि वो एक कंपनी में काम करता है. विदेश में एक ऑपरेशन में उसे मालूम होता है कि पाकिस्तान से संचालित हो रहा एक आतंकी संगठन भारत में कैद एक आतंकी बिलाल खान को किसी खास काम के लिए फरार करवाना चाहता है. जब तक ये खबर अजय तक पहुँचती है, बिलाल खान फरार हो जाता है. एटीएस चीफ फ़िरोज़ खान और अजय बिलाल को वापस लाने के लिए एक गुप्त ऑपरेशन की योजना बनाते है, जिसे बेबी नाम दिया जाता है. निर्देशक ने इस कहानी को इस कदर अंजाम तक पहुँचाया है कि दर्शक जिज्ञासा के साथ अपनी कुर्सी से चिपका रहता है. अदाकारी, निर्देशन और स्क्रीनप्ले के मामले में बेबी बेजोड़ है. हाँ फिल्म का लम्बापन और एक सोचा समझा क्लाइमेक्स सम्पूर्ण प्रभाव में डेंट मारता है. निर्देशक ने किरदारों से देशभक्ति की बड़ी-बड़ी बाते नहीं कहलवाई हैं बल्कि उनके एक्शन पर ज्यादा ध्यान दिया है. अजय की भूमिका में अक्षय कुमार पूरी तरह उतर गए हैं. एक ऐसा ऑफिसर जिसका चेहरा बेहद भावहीन है, जो ज्यादा बोलना पसंद नहीं करता। ये इतना जोशीला अफसर है कि सफलता का अनुमान यदि एक प्रतिशत हो तो भी जान जोखिम में डालने के लिए तैयार है. उसका खाली वक्त पत्नी और बच्चों से घर न आने की माफ़ी मांगते हुए ही बीतता है. अक्षय के अभिनय में बहुत परिपक्वता दिखाई देती है, जब वे नीरज के निर्देशन में काम करते हैं. अनुपम खेर का फिल्म में प्रवेश इंटरवल के बाद होता है लेकिन अपने अनुपम अभिनय के जरिये वे छाप छोड़ने में कामयाब रहते हैं. के के मेनन, रशीद नाज़, जमील खान और सुशांत सिंह ने फिल्म में निगेटिव किरदार निभाये है. इनमे जमील खान ने अपने अभिनय से हैरान किया है. तौफ़िक का किरदार उन्हें एक नई ऊंचाई दिलवा सकता है. सुशांत सिंह वसीम खान के किरदार में खूब जमे हैं. अफ़सोस है कि के के मेनन का किरदार उतना डेवलप नहीं किया गया.
26 जनवरी से पूर्व बेबी का प्रदर्शन उन अज्ञात नायकों को ठोंका गया सैल्यूट है, जो ख़ामोशी से आतंकवाद के खिलाफ लड़ रहे हैं. उनकी कोई फोटो अखबार में नहीं छपती, वे कहीं इंटरव्यू के लिए नहीं बुलाए जाते और न हमारे क्रिकेट खिलाडियों की तरह उन्हें देशसेवा के बदले सम्मान दिया जाता है. नीरज पांडे की ये फिल्म उन अज्ञात नायकों के लिए एक आदर पत्र है, जो रोज यही सोचकर आतंकवाद से लड़ने के लिए घर से निकलते हैं कि ये उनका आखिरी दिन है. बेबी एक सलाम है.