अब तक अंतरिक्ष के रहस्य रोमांच पर जितनी भी फिल्मे बनी हैं, ग्रेविटी उनमे सबसे न केवल बेहतर है बल्कि इस श्रेणी की सभी फिल्मों में मील का पत्थर बनेगी, इसमें कोई शुबहा नहीं है। अजीब बात है कि जिस फ़िल्म का नाम ' ग्रेविटी' है, उसके कुल जमा दो किरदार फ़िल्म के अंत तक भारहीनता में विचरते रहते हैं। तीन अंतरिक्षयात्री हब्बल स्पेस टेलिस्कोप की मरम्मत करने के लिए स्पेसवॉक कर रहे हैं, तभी एक चेतावनी मिलती है कि गलती से एक रुसी मिसाइल पृथ्वी के ऑर्बिट की ओर चला दी गई है। इस कारण ढेर साल स्पेस मलबा उनकी ओर खतनाक ढंग से बढ़ा चला आ रहा है। जब तक डॉ रयान स्टोन, आस्ट्रोनॉट मेट कोवास्की और स्पेस वॉक का मज़ा लूट रहा उनका एक साथी संभले, मलबे का एक ढेर उनसे आकर टकराता है। कुछ देर बाद रयान को मालूम होता है कि हब्बल तबाह हो चुकी है और अब इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पहुंचना लगभग असम्भव है।
आक्सीजन लेवल निम्नतम स्तर पर है और ऊपर से शांत, एकाकी अंतरिक्ष डरावने सन्नाटे के साथ उन्हें निगलने पर आमादा है. निर्देशक अल्फोंसो कुएरान ने अपनी कथा के नायकों के लिए असम्भव परिस्तिथियाँ गढ़ी हैं। सभी जानते हैं कि पृथ्वी से 600 किमी ऊपर ओज़ोन परत के पास यदि कोई दुर्घटना घट जाये तो बचे संसाधनों को जुटाकर खुद को ईश्वर भरोसे छोड़ देने के सिवा कोई रास्ता नहीं बचता। हमारे घर का टीवी ठीक चले या हमें मौसम की जानकारी ठीक-ठाक मिले, इन छोटी-छोटी बातों के लिए आस्ट्रोनॉट हर पल जान जोखिम में डालते हैं।
ये फ़िल्म उन साहसी अंतरिक्ष यात्रियों को मुस्तैदी से ठोंका गया सलाम है। तमाम अंतरिक्ष अभियानों का मकसद केवल हमारी पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे उपग्रहों की देखभाल से कही ऊँचा है। आज विज्ञान की इतनी उन्नति के बाद भी कोई अंतरिक्ष अभियान जान न जाने की गारंटी नहीं दे सकता। ग्रेविटी के डेढ़ घंटे का सफ़र अत्यंत रोमांचक और सांस रुक जाने जैसा अहसास है। विज्ञान के ऐसे साहसिक अभियानो में रूचि रखने वाले दर्शको को ये अनुभव थ्रीडी में लेना चाहिए।
आक्सीजन लेवल निम्नतम स्तर पर है और ऊपर से शांत, एकाकी अंतरिक्ष डरावने सन्नाटे के साथ उन्हें निगलने पर आमादा है. निर्देशक अल्फोंसो कुएरान ने अपनी कथा के नायकों के लिए असम्भव परिस्तिथियाँ गढ़ी हैं। सभी जानते हैं कि पृथ्वी से 600 किमी ऊपर ओज़ोन परत के पास यदि कोई दुर्घटना घट जाये तो बचे संसाधनों को जुटाकर खुद को ईश्वर भरोसे छोड़ देने के सिवा कोई रास्ता नहीं बचता। हमारे घर का टीवी ठीक चले या हमें मौसम की जानकारी ठीक-ठाक मिले, इन छोटी-छोटी बातों के लिए आस्ट्रोनॉट हर पल जान जोखिम में डालते हैं।
ये फ़िल्म उन साहसी अंतरिक्ष यात्रियों को मुस्तैदी से ठोंका गया सलाम है। तमाम अंतरिक्ष अभियानों का मकसद केवल हमारी पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे उपग्रहों की देखभाल से कही ऊँचा है। आज विज्ञान की इतनी उन्नति के बाद भी कोई अंतरिक्ष अभियान जान न जाने की गारंटी नहीं दे सकता। ग्रेविटी के डेढ़ घंटे का सफ़र अत्यंत रोमांचक और सांस रुक जाने जैसा अहसास है। विज्ञान के ऐसे साहसिक अभियानो में रूचि रखने वाले दर्शको को ये अनुभव थ्रीडी में लेना चाहिए।
आमतौर पर आम साइंस फिक्शन में कोई एलियन सामने आ जाता है या फिर कोई उल्का पिंड तेज़ी से पृथ्वी की ओर बढ़ रहा होता है लेकिन ग्रेविटी में कुल जमा दो किरदार है जिन्हे जॉर्ज क्लूनी और सेंड्रा बुलाक ने निभाया है। दोनों के सामने खलनायक वो परिस्थितियां हैं, जिनसे पार पाना लगभग असम्भव ही है। सम्भव है कल्पना चावला और उन तमाम अंतरिक्ष यात्रियो ने भी ऐसे ही खतरे का सामना किया हो और एक स्तर पर पहुंचकर खुद को बेबस पाया हो।
एक सीन है जिसमे सेंड्रा बुलाक को सेटेलाइट के केप्सूल में बैठ कर 100 किमी की दुरी तय करनी है लेकिन पॉवर ऑन नहीं हो रहा। इस सीन में बुलाक बुरी तरह झल्ला रही है लेकिन केमरा जैसे ही अंतरिक्ष पर फोकस होता है, एक ख़ामोशी छा जाती है। इस सीन का करने से पहले बुलाक को वाकई अकेले 18 घंटे बिताने पड़ते थे ताकि शूटिंग में अकेलेपन का तनाव उनके चेहरे पर साफ़ नज़र आये। बुलाक ने वाकई इस भूमिका के लिए बहुत समर्पण दिखाया है।
जॉर्ज क्लूनी ने एक ऐसे आस्ट्रोनॉट की भूमिका निभाई है जो घबराई स्टोन का मार्गदर्शक बन जाता है। बेहद ही मार्मिक दृश्य है कि मेट धीमे-धीमे स्टोन से दूर होता जा रहा है और उसकी ऑक्सीजन ख़त्म होती जा रही है। ऑक्सीजन के आखिरी कतरो में भी वह स्टोन को बताता जाता है कि अब उसे आगे का सफ़र कैसे तय करना है। थ्रीडी की तकनीक कैसे कलाकार की संवेदनाओ को आप तक पहुंचा देती है इसका खुबसूरत उदाहरण एक सीन में देखने को मिलता है। स्टोन केप्सूल में बैठी रो रही है, उसके नमकीन आंसू चारो ओर बिखर रहे हैं और उनमे से एक आंसू बहता हुआ हमारी आँखों के बहुत करीब आ जाता है। हर आस्ट्रोनॉट जानता है कि ऑर्बिट में प्रवेश उसके पुरे सफ़र का सबसे महत्वपूर्ण और खतरनाक हिस्सा होता है। स्टोन की धरती पर वापसी को निर्देशक ने बहुत सच्चाई के साथ फिल्माया है।
और अंत में
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अपनी आखिरी साँसों को समेट कर मेट स्टोन से कहता है '' यदि तुम स्पेस स्टेशन तक पहुंचने में कामयाब हो गई तो पृथ्वी पर वापसी पर तुम गंगा के किनारों से सूरज उगता देखोगी।'' जब स्टोन वापस लौटती है तो गंगा के किनारो से निकलता सूरज एक विहंगम दृश्य उपस्थित करता है। उस वक्त स्टोन को ग्रेविटी का असल मतलब समझ में आता है।
'' धरती जानती है कि उसकी गोद से निकलने के बाद
गहन अन्धकार और अथक सूनापन छाया है
चहुँ ओर बस ख़ामोशी और अन्धकार का राज
और इसीलिए ......
रोक लेती है वो दूर जाने वालो को
शायद ये गुरुत्व नहीं उसका प्यार है''