Sunday, September 21, 2014

पड़ोसी के खुशनुमा ख़त

सरहद पार से सिर्फ एक टीवी चैनल आता है और आरटीपी के आभासी झूलों पर पेंगे भर रहे तमाम टीवी चैनल जैसे जमीन पर आ गिरते हैं। 'जिन्दगी' चैनल के धारावाहिक कहानी, निर्देशन और अभिनय के स्तर पर हमारे चलताऊ धारावाहिकों से कही बेहतर नज़र आ रहे हैं। 'थकन', "कितनी गिरहे बाकी है', जैसे धारावाहिकों ने दूरदर्शन से प्रेरणा लेते हुए अपनी कहानियों को तेरह कड़ियों में पूर्ण करने का ट्रेंड जिन्दा कर दिया है। आज 'थकन' ने अपनी तेरह कड़ियों का छोटा सा खूबसूरत सफर खत्म कर लिया और इन तेरह दिनों में सदफ़(धारावाहिक की मुख्य पात्र) दिल पर एक छाप छोड़ गई। इधर हमारे घरेलु दर्शको पर राज कर रहे धारावाहिकों के निर्माता अब 'जिन्दगी' चैनल से खौफ़जदा हो गए हैं। एकाध चैनल पर जिन्दगी से प्रेरित होकर मुस्लिम पृष्ठभूमि के सीरियल खानापूर्ति के लिए शुरू कर दिए गए हैं ताकि 'जिन्दगी' के दर्शक छीने जा सके। लेकिन कोई ऐसा कर रहा है तो उस बड़े बदलाव से अनछुआ है जो जिन्दगी चैनल मनोरंजन की दुनिया में ले आया है। पाकिस्तान ने भले ही हमें बेहतरीन शक्कर के सिवा कुछ न दिया हो लेकिन टीवी की दुनिया में वहां की इन कहानियों ने हमारे धारावाहिक निर्माताओं को आईना दिखा दिया है। कम बजट में वे सशक्त कथानक के साथ दिल जीतने वाली कहानियां पेश कर रहे हैं और अचानक हमारे सास बहु टाइप धारावाहिक ट्रेंड से बाहर नज़र आ रहे हैं। यदि हमारा पड़ोसी दीवार के उस पार से पत्थर फेंकने के बजाय ऐसे खुशनुमा ख़त फेंके तो भला किसे एतराज़ होगा।