Thursday, June 23, 2016

आओ खाने की बात करे

भारतीय भोजन पद्धति जितनी प्राचीन है उतनी ही वैज्ञानिक भी. विश्व में सर्वश्रेष्ठ रसोई हम भारतीयों की ही मानी जाती है. कुछ दिन पूर्व केले के पत्ते पर भोजन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. तभी से दक्षिण भारतीय भोजन के बारे में जानने के लिए लगातार पढ़ रहा था. जो जानकारी मिली वो बड़ी रोचक है. केले के पत्ते पर भोजन करने का कारण स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है. जब तैयार भोजन केले के पत्ते पर रखा जाता है तो भोजन में मौजूद विटामिन रिचार्ज हो जाते हैं. आज भी दक्षिण भारत में अधिकांश परिवार केले के पत्ते पर ही भोजन करते हैं यहाँ तक कि होटलों में भी यही इको फ्रेंडली थाली उपयोग में लाई जाती है. इस समुदाय में खाने का पहला कौर घी में डूबा कर खाया जाता है. इसके पीछे का विज्ञान यही है कि इस कौर के बाद गला चिकना हो जाता है और खाने के बीच पानी पीने की जरुरत नहीं पड़ती।
महाराष्ट्र का सांबर और दक्षिण भारत की इडली 
400 साल पहले छत्रपति शिवाजी के सबसे बड़े पुत्र संभाजी (1657-1689) तंजौर पर शासन कर रहे थे. औरंगजेब को 27 साल तक भारत की सत्ता से दूर रखने वाले संभाजी एक बहुत अच्छे रसोइये भी थे. उनके फुर्सत के पल रसोई में पसंदीदा खाना बनाते हुए गुजरते थे. उस रोज भी वे अपनी मनपसंद आमटी बनाने के लिए रसोई में गए और जब दाल में कोकम डालने की बारी आई तो पता चला कोकम तो भंडार गृह में था ही नहीं। तभी उनके खड़े सहायक ने संभाजी के कान में फुसफुसाकर बोला कि दाल में खट्टापन लाने के लिए इसमें ईमली डालकर प्रयोग कर सकते हैं. संभाजी ने वैसा ही किया और उस दिन सांबर का अविष्कार हुआ. इडली हालांकि उससे बहुत पहले ही ईजाद की जा चुकी थी.सन 928 (ए डी) शिवकोटि आचार्य के कन्नड़ प्रलेख में इडली का उल्लेख मिलता है. तो इस तरह दो विभिन्न समुदायों ने मिलकर इडली और सांबर का आविष्कार किया।