मोहनजो दारो फिल्म के प्रोमो आते ही क्या-क्या धतकरम चल रहे हैं शायद आपको मालूम नहीं होगा। इस फिल्म के जरिए देश की सेकुलर ताकतों की 'आर्यों' के प्रति छुपी नफरत सामने आ रही है. जबरदस्त षड्यंत्र चल रहा है मित्रों। सर्वविदित है कि मोहनजोदड़ो हमारी सनातन संस्कृति का हिस्सा रही है. षड्यंत्र इस तरह रचा जा रहा है कि लोग फिल्म देखने जाए ही नहीं। इन छुपी हुई ताकतों की फिल्म बनाने वालों से कोई दुश्मनी नहीं है, दुश्मनी है मोहनजोदडो के प्राचीन इतिहास से. मोहनजोदड़ो की खुदाई में जो कुछ मिला उससे जाहिर होता है कि ये सभ्यता 'मूर्ति पूजक' थी. खेती करना जानती थी, चित्रकला और मोहरे बनाती थी. कुल मिलकर ये एक उन्नत सभ्यता रही होगी। षड्यंत्रकारियों को आपत्ति है कि आशुतोष गोवारिकर इस फिल्म में मोहनजोदड़ो को भारतीय संस्कृति से क्यों जोड़ रहे हैं. उनको आपत्ति ये है कि अमेरिका में इंजीनियर रह चुके एन एस राजाराम और नटवर झा की संयुक्त किताब में कहा गया है कि मोहनजोदड़ो वैदिक संस्कृति का पालन करने वाली सभ्यता थी. लोगों के पेट में दर्द इसलिए उठ रहा है क्योंकि फिल्म में आशुतोष गोवारिकर ने इनपुट्स एन एस राजाराम और नटवर झा की किताब (The Deciphered Indus Script: Methodology, Readings, Interpretations)से लिए हैं. सर्वज्ञानी इतिहासकार रोमिला थापर इस किताब का विरोध करती रही है. एन एस राजाराम और नटवर झा दावा करते हैं कि मोहनजोदड़ो की सभ्यता घोड़े पालना सीख गई थी. रोमिला जी दावा ठोंकती है कि 2000 बीसी से पूर्व भारत में घोड़ों की मौजूदगी ही नहीं थी. उनके अनुसार ये तथ्य गलत है. इतिहास की जानकारी रखने वालों से इस बारे में स्प्ष्टीकरण चाहूंगा। दरअसल मोहनजो दारो फिल्म में घोड़ो की सील देखकर प्रगतिशीलों का हलक सूख रहा है. डॉ. आरती मलिक की किताब ' सरस्वती इतिहास' में जिक्र किया गया है कि मोहनजोदड़ो में खुदाई के दौरान कुछ मूर्तियां ऐसी मिली जिनसे जाहिर होता है कि ये सभ्यता शिव पूजक थी. यहां यज्ञ-हवन किए जाते थे. यदि में गलत नहीं हूं तो आने वाले दिनों में फिल्म के प्रति विरोध के स्वर और तीव्र होंगे। ये जानकारी आप लोगों तक पहुंचाना जरूरी थी.
Friday, July 1, 2016
दिल को धड़कता हुआ महसूस कीजिये
Resurgence का अर्थ होता है पुनः उत्थान करना। इंडिपेंडेंस डे:रिसर्जन्स वहीँ से शुरू होती हैं, जहाँ वो 1996 में खत्म हुई थी। पृथ्वी पर पहला एलियन हमला कई शहरों को समूल नष्ट कर देता है। जिस शक्तिशाली मदरशिप को पृथ्वीवासी अदम्य साहस से पराजित कर देते है, वहां से एक सिग्नल सुदूर ब्रम्हांड में बसे उनके ग्रह पर पहुंचा दिया जाता है। सिग्नल को हज़ारों प्रकाशवर्ष दूर पहुँचने में बीस साल लग जाते हैं। इधर बीते बीस साल में पृथ्वीवासी विज्ञान में खासी तरक्की कर चुके हैं। उधर
एलियन क्वीन को पृथ्वी पर तबाही मचाने गए मदरशिप का सन्देश मिल जाता है। रानी इतनी शक्तिशाली है कि पृथ्वी को नष्ट करना उसके लिए खिलौनों से खेलने जैसा है। एक तीन हजार किमी लंबा स्पेसशिप हमारे सौर मंडल की ओर चल पड़ता है। पृथ्वी पर बीस साल पहले छोड़े गए मदरशिप के फंक्शन खुद-ब-खुद काम करने लगते हैं, बंदी बनाए गए एलियन ख़ुशी से नाचने लगते हैं। उन्हें मालूम हो जाता है कि रानी तेज़ी से पृथ्वी की ओर बढ़ रही है। एक अदृश्य कवच में लिपटा स्पेसशिप राडार को चकमा देते हुए पृथ्वी के वायुमंडल में प्रविष्ट हो जाता है। इसके बाद शुरू होती है भयानक तबाही।
निर्देशक रोनाल्ड एमरिक ने इंडिपेंडेंस डे की पहली किश्त का निर्देशन किया था और अब दूसरा भाग लेकर आए हैं। दूसरी फ़िल्म भी पूर्व की तरह मनोरंजक और रोमांचित करने वाली है। कहानी को उन्होंने सिलसिलेवार ढंग से आगे बढ़ाया है। दो घण्टे की ये फ़िल्म आपको सीट से हिलने नहीं देती, पॉपकॉर्न की तरफ आपकी उँगलियाँ बढ़ नहीं पाती क्योंकि वो तो मारे भय के आपस में चिपकी रहती हैं। सबसे जबरदस्त दृश्य वो है जब रानी का शिप पृथ्वी पर उतरता है। शिप के गुरुत्व बल से खींचकर इमारते ढहने का दृश्य जबर्दस्त ढंग से फिल्माया है। पूर्व वाली फ़िल्म के कई किरदार इस फ़िल्म में भी दिखाई देते है इसलिए कहानी का तारतम्य बना रहता है।
फ़िल्म का थ्री डी एक नयापन लिए हुए हैं। अब तक हम जो थ्रीडी देखते आये हैं उनमे छवियाँ बाहर की ओर आती दिखाई देती हैं लेकिन इंडिपेंडेंस डे में ऐसा नहीं होता। इसका त्रि आयामी प्रभाव कुछ ऐसा है कि आप कमरे में बैठे किसी खिड़की से बाहर का दृश्य देख रहे हो। नदी, नदी के पीछे पहाड़, आसमान में उड़ते पक्षी और सबसे पीछे का सूरज। फ़िल्म में दृश्यों को आप अचंभित करने वाली गहराई के साथ देख पाएंगे।
अमेरिका में इस फ़िल्म को उतना रिस्पॉन्स नहीं मिल रहा जितने की उम्मीद है। आलोचक कह रहे हैं कि फ़िल्म विज्ञान सम्मत नहीं बनी है। कई आलोचक इसे अति प्रलयवाद बता रहे हैं। भारत में दर्शकों ने फ़िल्म का स्वागत किया है। वीकेंड में इसे बेहतर दर्शक मिल रहे हैं। जिस ऑडी में मैं फ़िल्म देख रहा था, वहां पुरे दो घण्टे सन्नाटा रहा लेकिन मैंने उत्तेजना से कांपते दर्शकों की साँसों को महसूस किया।
फ़िल्म एक सन्देश देती है कि ब्रम्हांड की गहराइयों से खतरा कभी भी निकलकर सामने आ सकता है। कोई लंबा-चौड़ा उल्का पिंड या कोई शक्तिशाली एलियन प्रजाति हमारे अस्तित्व के लिए खतरा बन सकती है। ऐसे में केवल हमारी जिजीविषा ही हमें बचाएगी।
Subscribe to:
Posts (Atom)