Friday, September 11, 2015

मिस्कास्टिंग इसे ही कहते हैं

सुभाष घई की ब्लॉकबस्टर फिल्म हीरो की रीमेक पहले दिन ही सौ करोड़ी दौड़ से बाहर हो चुकी है. हीरो की रीमेक बना रहे निखिल आडवाणी क्यों असफल रहे. सलमान खान प्रोडक्शन की फिल्म औंधे मुंह क्यों गिरी, सूरज पंचोली और आथिया शेट्टी प्रतिभाशाली होते हुए भी क्यों नहीं चमक सके. बहुत सी उम्मीदे थी इस नई जोड़ी से जो ढंग से एक दिन भी फिल्म को नहीं खींच सके. जिस फिल्म ने बरसो पहले फिल्म उद्योग को दो सितारे दिए, उसी फिल्म की रीमेक में ऐसा क्या हुआ कि वो दरकिनार कर दिए गए. 
1983 में शोमैन घई एक अनजान जोड़ी को सामने लाते हैं. एक है जयकिशन श्राफ और दूसरी एक अन्य असफल फिल्म पेंटर बाबू की नायिका मीनाक्षी शेषाद्रि। फिल्म प्रदर्शित होती है और इंडस्ट्री के आकाश पर दो नए सितारे जगमगाने लगते हैं. बाद में दोनों अत्यंत सफल और लम्बी पारी भी खेलते हैं. इसलिए तो कहा जाता है फिल्म उद्योग में आपने प्रवेश किस अदा से किया, वही सबसे महत्वपूर्ण बात होती है. निखिल आडवाणी की हीरो दरअसल बुरी तरह से मिस्कास्टिंग का शिकार रही है. युवा फिल्म मेकर्स को मिस्कास्टिंग को समझने के लिए ये फिल्म जरूर देखनी चाहिए। जब सुभाष घई इस फिल्म की कहानी पर काम कर रहे थे तो उनके दिमाग में मुख्य किरदार के लिए एक ऐसा चेहरा उभर रहा था जो गरीबी की मार से गुजरा हो, जिसने असलियत में सड़क पर रहने का दर्द महसूस किया हो, कई बार गलियां खाई हो. सबसे मुख्य बात, व्यवस्था के प्रति उसके मन में एक आक्रोश वाकई धधक रहा हो. ये सारी बाते उन्हें एक संघर्षरत कलाकार और टपोरी जयकिशन श्राॅफ में नजर आई और इस तरह जैकी श्राफ सितारा बने. चूँकि सूरज पंचोली के मन में कोई आक्रोश नहीं धधक रहा है. वे प्राश्रय प्राप्त युवा अभिनेता हैं, जिन्हे संघर्ष तक नहीं करना पड़ा. हालांकि वे प्रतिभाशाली हैं लेकिन ये किरदार उनके लिए नहीं बना था, वे इस कहानी की जरुरत थे ही नहीं। इसका नतीजा ये रहा कि किरदार की गहराई फिल्म में कहीं नजर ही नहीं आई. ये एक ऐसा सदमा है जिससे इस युवा जोड़ी को उबरने में काफी वक्त लगेगा। इस फिल्म का एक नतीजा ये भी रहा कि एक बात साबित हो गई और वो ये सलमान का आभामंडल और कलाकारों को बॉक्स ऑफिस की निर्मम परीक्षा में सफल नहीं करवा सकता।