Saturday, December 21, 2013

फिल्म समीक्षा: इस बार नहीं मची धूम


धूम-3 में लूट का पहला सीन : साहिर(आमिर खान) बैंक में पड़ी टेबल पर आराम से सुस्ताने के बाद सिर पर हैट लगाता है और कुछ संवाद बोलता है। कट,  दूसरा सीन, बैंक की इमारत की छत से साहिर दौड़ता हुए नीचे आ रहा है और ऊपर से नोट हवा में उड़ते हुए जमीन पर गिर रहे हैं। कट, आमिर अब बाइक पर सवार है और पता नहीं कहां से कई अंग्रेज पुलिसवाले साइरन बजाते हुए आ पहुंचे हैं, उन्हें शायद एसएमएस कर के बुलाया गया है। मैं सिर धुनते हुए इन्हीं सवालों के जवाब पाने की कोशिश करता रहा कि शातिर चोर साहिर बैंक के भीतर कैसे दाखिल हुआ, उसने बैंक की तिजोरियों पर कैसे हाथ साफ किया और सबसे बड़ा सवाल कि जब साहिर ने नोट हवा में उड़ा दिए थे तो आखिरकार वह घर क्या लेकर गया। ऐसे ही अधूरेपन के साथ शुरू हुई धूम-3 आखिर तक अधूरी ही रहती है। धूम सीरिज की दो रोमांच से भरी  बेहतरीन फिल्मों के बाद हम एक ऐसी फिल्म देखते हैं, जिसे हिट बनाने के लिए न केवल कहानी का बंटाढार किया गया, बल्कि बॉक्स आफिस की शर्तिया सफलता के लिए आमिर के ग्लैमर और बेइंतहा सिर दुखाने वाले एक्शन और स्पेशल इफेक्ट्स का इस्तेमाल किया गया है। आखिर ऐसी क्या बात है कि इतने तामझाम के बाद भी दर्शक की जेब तो लुट गई लेकिन ये तीसरी किस्त दिल नहीं लूट पा रही। मल्टीप्लैक्स और ठाठिया सिंगल स्क्रीन पर इस फिल्म को देखने के दौरान दर्शकों की मिली प्रतिक्रियाओं को हजम करते हुए मैं इसी नतीजे पर पहुंचा कि निर्माता अपनी सौ-डेढ़ सौ करोड़ की कॉलर तो खड़ी कर लेगा लेकिन उसके मुख्य ब्रांड धूम की साख को गहरा झटका लगेगा क्योंकि रितिक और जॉन अब्राहम की मुख्य भूमिका  वाली फिल्में कहानी, स्क्रीनप्ले, और संगीत के लिहाज से इस फिल्म से ज्यादा मनोरंजक थी। चोर बदला लेने के लिए चोरी करता है और बदला भी किससे, न बोल सकने वाले बैंकों से। बैंक की दीवारे खलनायक का प्रभाव  पैदा नहीं कर पाई और न ही बैंक चलाने वाले किरदार में ऐसा दम दिखा कि उसका खौफ कही नजर आए। दरअसल  चोर के प्रतिशोध का कारण बहुत दमदार नहीं था। जब अभिषेक  बच्चन रिक्शा ? से दीवार तोड़कर एंट्री ले और एक घूंसे में विलेन को हवा में उड़ा दे तो धूम की सिग्नेचर थीम कचरा-कचरा होती नजर आती है। धूम के अब तक के विलेन बड़े प्यारे रहे हैं, उनका काम केवल चोरी करना था और वे खुद को कलाकार समझते थे। इस बार यह चोर डार्क शेड्स के साथ प्रस्तुत होता है और मन को नहीं भाता । संगीत पक्ष के बारे में केवल इतना ही कहना चाहूंगा कि इसका एक भी गाना थिएटर से बाहर आते हुए गुनगुनाने का मन नहीं करता। बाकी कलाकारों की बात करने का कोई मतलब ही नहीं है और मेरा मानना है कि अपने किरदार को ठीक तरह से समझने में मिस्टर परफेक्शनिस्ट आमिर खान चूक गए हैं। उन्होंने अपने किरदार को जरूरत से ज्यादा गम्भीरता  से  निभाया  है। ये किरदार करने से पहले उन्हें ऋतिक (धूम-2) के अंडरप्ले पर गौर करना चाहिए था। ऋतिक किस तरह इस जटिल किरदार को सहजता से  निभा ले गए थे। हालांकि दर्शकों की प्रतिक्रियाएं बाहर नहीं आ सकेंगी क्योंकि पैड रिव्यू और फर्जी चैनलों की मीठी प्रशंसाएं हकीकत को कालीन के नीचे ढंक देगी। अंत में निर्देशक विजय कृष्णा आचार्य की  अदभुत कल्पनाशीलता की बात। आमिर के पास ऐसी बाइक है, जो पल भर  में बोट में बदल जाती है, पानी में घुसकर सबमरीन बन जाती है और जरूरत पड़ने पर लोहे के तार पर ऐसे चलती है, जैसे शाम की सैर पर जा रही हो। शुक्र है इस बाइकबोटमरीन को उन्होंने हैलीकॉप्टर में नहीं बदला।