Friday, July 1, 2016

भारत में घोड़ों की मौजूदगी


मोहनजो दारो फिल्म के प्रोमो आते ही क्या-क्या धतकरम चल रहे हैं शायद आपको मालूम नहीं होगा। इस फिल्म के जरिए देश की सेकुलर ताकतों की 'आर्यों' के प्रति छुपी नफरत सामने आ रही है. जबरदस्त षड्यंत्र चल रहा है मित्रों। सर्वविदित है कि मोहनजोदड़ो हमारी सनातन संस्कृति का हिस्सा रही है. षड्यंत्र इस तरह रचा जा रहा है कि लोग फिल्म देखने जाए ही नहीं। इन छुपी हुई ताकतों की फिल्म बनाने वालों से कोई दुश्मनी नहीं है, दुश्मनी है मोहनजोदडो के प्राचीन इतिहास से. मोहनजोदड़ो की खुदाई में जो कुछ मिला उससे जाहिर होता है कि ये सभ्यता 'मूर्ति पूजक' थी. खेती करना जानती थी, चित्रकला और मोहरे बनाती थी. कुल मिलकर ये एक उन्नत सभ्यता रही होगी। षड्यंत्रकारियों को आपत्ति है कि आशुतोष गोवारिकर इस फिल्म में मोहनजोदड़ो को भारतीय संस्कृति से क्यों जोड़ रहे हैं. उनको आपत्ति ये है कि अमेरिका में इंजीनियर रह चुके एन एस राजाराम और नटवर झा की संयुक्त किताब में कहा गया है कि मोहनजोदड़ो वैदिक संस्कृति का पालन करने वाली सभ्यता थी. लोगों के पेट में दर्द इसलिए उठ रहा है क्योंकि फिल्म में आशुतोष गोवारिकर ने इनपुट्स एन एस राजाराम और नटवर झा की किताब (The Deciphered Indus Script: Methodology, Readings, Interpretations)से लिए हैं. सर्वज्ञानी इतिहासकार रोमिला थापर इस किताब का विरोध करती रही है. एन एस राजाराम और नटवर झा दावा करते हैं कि मोहनजोदड़ो की सभ्यता घोड़े पालना सीख गई थी. रोमिला जी दावा ठोंकती है कि 2000 बीसी से पूर्व भारत में घोड़ों की मौजूदगी ही नहीं थी. उनके अनुसार ये तथ्य गलत है. इतिहास की जानकारी रखने वालों से इस बारे में स्प्ष्टीकरण चाहूंगा। दरअसल मोहनजो दारो फिल्म में घोड़ो की सील देखकर प्रगतिशीलों का हलक सूख रहा है. डॉ. आरती मलिक की किताब ' सरस्वती इतिहास' में जिक्र किया गया है कि मोहनजोदड़ो में खुदाई के दौरान कुछ मूर्तियां ऐसी मिली जिनसे जाहिर होता है कि ये सभ्यता शिव पूजक थी. यहां यज्ञ-हवन किए जाते थे. यदि में गलत नहीं हूं तो आने वाले दिनों में फिल्म के प्रति विरोध के स्वर और तीव्र होंगे। ये जानकारी आप लोगों तक पहुंचाना जरूरी थी.

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