Monday, July 27, 2015

मजबूत और नेक हाथों की कहानी : 'मांझी-द माउंटेन मैन'

कल आने वाली फिल्म 'मांझी-द माउंटेन मैन' का प्रोमो देख रहा था तो मन में विचार आया कि केतन मेहता और नवाजुद्दीन सिद्दीकी जैसे दो घातक रसायन यदि मिल जाए तो क्या घटित होगा। एक बेजोड़ निर्देशक और बेमिसाल अदाकार का जोड़ जब होता है तो कभी इतिहास बनते हैं और कभी हादसे होते हैं.
प्रोमो की एक झलक बता रही है कि ये फिल्म अंततः एक महान नायक दशरथ मांझी को उनका उचित सम्मान दिलाएगी, जो उन्हें जीते जी मिल नहीं पाया। एक बेहतर स्टोरीटेलर समझे जाने वाले केतन मेहता ने इस प्रोजेक्ट के लिए खासी मेहनत की है. मेरा ऐसा अनुमान है कि ये फिल्म चार मुख्य बातों के लिए जानी जायेगी। पहली दशरथ मांझी जैसे दृढ़ निश्चयी व्यक्तित्व के बारे में युवा पीढ़ी जानेगी। मांझी के इस दुनिया को दिए योगदान के बारे में जानकर उनके मन में इस महानायक के लिए आदर का भाव उपजेगा। दूसरा ये फिल्म नवाज को वो मुकाम दे जायेगी, जिसकी उन्हें जरुरत है. तीसरा केतन के लिए ये फिल्म एक बिग कमर्शियल सक्सेस हो सकती है. चौथा केंद्र में सरकार बदलने के बाद फिजा में अजीब सा उथलपुथल का माहौल है. ऐसा लग रहा है कि अवाम का हौसला पस्त हो रहा है. दशकों से सत्ता के चाबुक सहती आई अवाम कुछ देर के लिए उठकर खड़ी हुई ही थी कि फिर चाबुक चलते महसूस होने लगे है.
दशरथ ने अपनी पत्नी  फाल्गुनी देवी को खो देने के बाद एक भरेपूरे पहाड़ से टकराने का साहस किया। दिन-रात किए परिश्रम के कारण 1960  में शुरु किया यह असंभव लगने वाला काम 1982  में पूरा हुआ. उन्होंने  360  फुट लंबा, 25  फुट ऊँचा और 30  फुट चौडा रास्ता बनाया. इससे गया जिले में के आटरी और वझीरगंज इन दो गॉंवों में का अंतर दस किलोमीटर से भी कम रह गया. किसी और के घर का सदस्य इलाज के अभाव में न मर जाए इसलिए ये शख्स एक पहाड़ से बाइस साल तक लड़ता रहा. आज देश के नागरिक भी अपने सामने मुसीबतों का पहाड़ देख रहे हैं. फिल्म के प्रदर्शित होने की सिचुएशन एकदम परफेक्ट है. फिल्म का इसी समय प्रदर्शित होना भी तक़दीर में बदा था.
इस फिल्म की कमर्शियल सक्सेस कोई मायने नहीं रखती। ये तो बाइस साल औरो की खातिर पत्थर तोड़ने वाले उन हाथों पर फेंका गया एक फूल है बस और कुछ नहीं। उन मजबूत और नेक हाथों की हरकत 2007 में हमेशा के लिए थम गई. दशरथ मांझी चला गया. पहाड़ को बोलकर चुनौती देने वाला मांझी रास्ता बनाकर चला गया. मुझे पूरा यकीन है कि झक्की, सनकी और धुन का पक्का मांझी हम नवाज में देख पायेंगे, पत्थरों से उड़ती किरचें अपने चेहरे पर महसूस कर पाएंगे। उस गरीब मजदुर के जीवन से कुछ प्रेरणा ले पाएंगे।





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