Saturday, June 29, 2013

'सिंघम बोल बच्चन' नहीं अदाकार बनो

प्रकाश झा की आगामी फिल्म सत्याग्रह में भारी भरकम सितारों की फ़ौज दिखाई दे रही है। अमिताभ बच्चन, अजय देवगन, करीना कपूर, मनोज वाजपेयी और अर्जुन रामपाल प्रकाश झा की सत्याग्रह ब्रिगेड के सबसे ख़ास लड़ाके हैं। सभी जानते हैं कि 'सत्याग्रह' समाजसेवी अन्ना हजारे के बहुचर्चित आन्दोलन पर आधारित है। आज मैं हिंदी फिल्मो के कलाकारों की ऑन स्क्रीन इमेज के बारे में बात करना चाहता हूँ। आज ही करीना कपूर का इंटरव्यू पढ़ा, जिसमे वे कह रहीं थी कि फिल्म में मेरा किरदार बहुत दमदार है। करीना बहुत प्रतिभाशाली कलाकार हैं। बीते साल उनकी पांच फ़िल्में प्रदर्शित हुई, जिनमे दो फिल्मे मेहमान कलाकार की भूमिका वाली थी। 2012 में उनके निभाए सारे किरदार ग्लेमरेस थे। एक 'हिरोइन' फिल्म ही ऐसी रही, जिसमे करीना का अभिनय दिखाई दिया। पिछले दो सालो में निभाई भूमिकाओ ने उनकी ग्लेमरेस इमेज बना दी है। अब उन्हें प्रयोगधर्मी कलाकार नहीं माना जा रहा है, ये उपाधि उनकी जूनियर विद्या बालन पर ज्यादा जंचती है। दबंग-2 में निहायत ही सस्ते से  गीत 'फेविकोल' के जरिये वे रातों-रात 'हॉट' का तमगा पा लेती हैं और अगले साल सत्याग्रह जैसी फिल्म में एक पत्रकार की भूमिका स्वीकार लेती हैं। लेकिन क्या इतनी ही तेज़ गति से दर्शको के मन से अपने प्रिय सितारे की इमेज हटाई जा सकती है। क्या करीना एक पत्रकार की गंभीर भूमिका में स्वीकार कर ली जायेंगी, जवाब है, शायद ना। करीना अपने कप्तान प्रकाश झा की उम्मीदों  पर तो खरी उतरेंगी लेकिन एक सितारे के रूप में उनके प्रशंसको के बारे में कहना मुश्किल है। प्रकाश झा के दुसरे सितारे अजय देवगन भी फिल्म में बेहद ख़ास भूमिका में होंगे। 2010 में प्रकाश झा की ही फिल्म 'राजनीति' में उन्होंने बेहद शानदार अभिनय किया था लेकिन उसके बाद के दो सालों में उन्होंने अंधाधुंध मसाला फिल्मे की है। अब वे 'सिंघम बोल बच्चन' बन चुके हैं और एक दर्जन मसाला फिल्मों के जरिये बॉक्स ऑफिस पर सौ करोड़ की टकसाल बन चुके हैं। सवाल वही है कि क्या अब फिर वे अपने नए किरदार की चमड़ी में फिट होंगे। यहाँ शाहरुख़ खान का उदारहण देना चाहूँगा।  शुरूआती दिनों में निभाए किरदार उनके पुरे करियर पर हावी हो गए। डीडीएलजे का राहुल शाहरुख़ के सारे  किरदारों से झांकता दिखाई देता है। यहाँ रा-वन का जिक्र करना चाहूँगा। शाहरुख़ ने सोचा कि केवल सुपरहीरो का सूट भर पहन लेने और उनकी स्टार इमेज के सहारे फिल्म की नैया पार हो जायेगी। लेकिन दर्शको ने रा-वन को दिवाली का बुझा हुआ पटाखा बना दिया।   इस फिल्म के स्टंट सीन को याद कीजिये और शाहरुख़ की दौड़ देखिये, आपको लगेगा कि  डीडीएलजे का राहुल ट्रेन के पीछे भाग रहा हो। यदि ये किरदार ऋतिक रोशन को दिया जाता तो वो अपना व्यक्तित्व ही इस किरदार के अनुरूप ढाल लेते। कहने का मतलब यही है कि  यदि ऑन स्क्रीन इमेज ब्रेक करनी हो तो फिल्मो में एक अंतराल जरुरी होता है ताकि दर्शक आपकी पिछली इमेज को भूल सके।  आमिर खान और ऋतिक रोशन की मिसाल दी जा सकती है। ये ऐसे कलाकार हैं जो बड़े सितारे होते हुए भी बॉक्स ऑफिस की टकसाल बनना मंजूर नहीं करते। और ऐसे ही चंद कलाकारों के दम पर फिल्म उद्योग का असली स्टारडम जिन्दा है।

Thursday, June 20, 2013

फिल्म समीक्षा : सुपरमैन के सूट में ये तो 'बैटमैन' है


ऐसा क्यों होता जा रहा है कि हमारी फिल्मों की तकनीक जितनी विकसित होती जा रही है, कहानियों का भाव पक्ष उतना ही कमज़ोर होता जा रहा है। निर्माता क्रिस्टोफर नोलान की 'रिबूट सुपरमैन मूवी' मैन ऑफ़ स्टील देखते हुए मेरा यकीन इस बात में और भी पुख्ता हो गया। सच कहू तो फिल्म शुरू होने से पहले मैं ये देखने के लिए  बहुत उत्सुक था कि सुपरमैन की कहानी को नई तकनीक के साथ कैसे पेश किया जायेगा, उत्सुकता स्वाभाविक थी क्योकि हमने बचपन से सुपरमैन की फिल्मे देखते कभी नहीं सोचा था कि हम इसकी कहानी को नई तकनीक के साथ रिवर्स होते कभी देख पाएंगे।  क्रिप्टान ग्रह से एक केप्सूल में सुपरमैन की एंट्री, पहली बार उसकी उड़ान और एक पत्रकार के रूप में उसका जीवन, ये ऐसे लम्हे हैं, जिनके बगैर सुपरमैन की कहानी बेजान हो जाती है। मैन ऑफ़ स्टील ऐसी ही बेजान फिल्म है, जिसमे हमारे प्रिय नायक और सुपरहीरोज के अटल नियमो का चूरण बना कर दर्शक को चटा दिया जाता है। सुपरमैन को हम पहली बार एक ऐसे शख्स के रूप में देखते हैं, जो अपनी अभूतपूर्व शक्तियों को छुपाये रखता है और इस कारण गहरे अवसाद का शिकार हो जाता है। क्या हम अब अपने बच्चों को ऐसा सुपरमैन दिखाना चाह रहे हैं, जिसे दुनिया बचाने से पहले अपने अवसाद से लड़ना पड़ता हो। तकनीक और धमाको से भरपूर होने के बावजूद मैन ऑफ़ स्टील बड़ी ही सूखी फिल्म जान पड़ती है क्योकि निर्देशक जेक स्नायडर ने इसे सिरे से एक डार्क बैटमैन मूवी बनाने की असफल कोशिश की है। ऐसा इसलिए हुआ है क्योकि निर्माता क्रिस्टोफर नोलान एक बैटमैन मूवी के नायक हैं। उनकी बैटमैन वाली मानसिकता इस फिल्म को कोढ़ की तरह लग गई है। सुपरमैन जब उसकी कॉमिकनेस के साथ पेश होता है, तभी दर्शको को भाता है। बैटमैन और सुपरमैन के बेकग्राउंड बिलकुल जुदा है। बैटमैन पर बचपन की त्रासदियो का गहरा असर है और इसलिए वो अकेला रहना पसंद करता है। इसके उलट केंट क्लार्क एक मिलनसार सुपर हीरो है। उसे बड़े प्यार से पाला गया है और वो कभी किसी अपराधी को जान से नहीं मारता। मैन ऑफ़ स्टील में वो कॉमिकनेस नज़र ही नहीं आती।  सुपरमैन आधी फिल्म तक तो खुद से ही जूझता रहता है और जब कहानी विस्तार लेने लगती है तो निर्देशक क्लाइमेक्स को अंतहीन धमाकों और बेवजह की लड़ाई से पाट देते हैं। फिल्म की एडिटिंग बेहद बकवास है। फ्लेश्बेक के दृश्यों और वर्तमान में चल रहे दृश्यों में इतना घालमेल है कि कई बार कहानी समझने में समस्या होने लगती है। कैसे सुपरमैन  क्रिप्टान के बर्फ में दबे यान तक पहुँच जाता है, कैसे उसके पृथ्वी वाले माता-पिता को पता चलता है कि वो बच्चा अद्भुत शक्तियां लेकर धरती पर आया है। इस बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। किसी भी सुपर हीरो की पहली फिल्म उसके भविष्य में आने वाले सारे संस्करणों की जननी होती है। सुपर हीरो को उसकी शक्तिया कैसे मिली, वो पहली बार कैसे उड़ा, उसकी पहली लड़ाई, सभी कहानी के अहम् हिस्से होते हैं। याद करें सेम रयामी की स्पाइडर मैन को। जब पीटर को पहली बार अहसास होता है कि वो पास उड़ रही मक्खी की हर हरकत को गौर से महसूस कर सकता है। मैन ऑफ़ स्टील में पहली उड़ान पर निकला सुपरमैन महज तीन प्रयासों में अन्तरिक्ष की सैर कर आता है। निर्देशक को कोई समझाओ कि ये एक महानायक के जन्मने की कहानी है, उसके परिपूर्ण होने की नहीं। दूसरी बड़ी खामी ये है कि विलेन से भयानक लड़ाई लड़ने के बाद सारे शहर को मालूम हो जाता है कि सुपरमैन कौन है। अब अगली फिल्म में पुलिस को सुपरमैन की मदद लेनी होगी तो वो सीधे पत्रकार केल- ई ( सुपरमैन का नया नाम) के घर पहुँच सकती है। इस तरह निर्देशक ने अपने सुपर हीरो की गोपनीयता पहले ही भाग में तार-तार कर दी है। फिल्म में सुपरमैन का पारम्परिक दुश्मन लूथर गायब हो जाता है, यहाँ सुपरमैन को अपने ही ग्रह के लोगों से मुकाबला करना है। जनरल जोड और सुपरमैन की आखिरी लड़ाई इतनी जबरदस्त होती है कि जमीन से लेकर अन्तरिक्ष में तैर रही सेटेलाईट तक उनके कोप का शिकार हो जाते हैं। दर्शक सर पकड कर सोचने लगता है कि ये जोड आखिर क्या खाकर पृथ्वी पर आया है। मुझे ये विलेन दक्षिण भारतीय फिल्मों के उन खलनायकों की तरह लगा जो बीस गोली खाकर उस  वक्त उठ खड़े होते है जब हीरो-हिरोइन माँ बाप समेत द एंड वाले शॉट में जाने की तैयारी कर रहे होते हैं।  , जोड़ मुझे कुंगफु से युक्त उन चीनी फिल्मों के विलेन की तरह भी लगा, जिसे लड़ते देख लगने लगता है कि इसे मारने के लिए खुद भगवान को नीचे आना पड़ेगा। कहने का मतलब यही है कि 'बैटमैन' क्रिस्टोफर नोलान के डार्क  'फिंगरप्रिंट्स' मैन ऑफ़ स्टील पर दिखाई देते हैं। सुपरमैन की कॉमिकनेस लहुलुहान हो चुकी है क्योकि अपने 55 साल के इतिहास में पहली बार सुपरमैन ने किसी को जान से मारा  है। 
















Tuesday, June 11, 2013

क्रेप्टन ग्रह से फिर शुरू होगी कहानी


1933 का साल, अमेरिका के एक शहर क्लेवलेंड में दो हाईस्कूल के विद्यार्थी  एक कामिक्स केरेक्टर बनाने में जुटे थे। दुनिया भर की कामिक्स पढ़ लेने के बाद जेरी सिगल और जो शुस्टर के दिमागी घोड़े एक ऐसे सुपरहीरो के चरित्र को गढ़ रहे थे, जिसकी चमक अगले सौ सालों में भी फीकी नहीं पड़ने वाली थी। जेरी और शुस्टर की कल्पना से ' सुपरमैन' निकल कर डीसी कॉमिक्स का मुख्य नायक बना और इतना कामयाब हुआ कि उस पर कई फिल्मे बनी और दुनियाभर में जबरदस्त हिट रही। 1940 से लेकर 80 के दशक तक सुपरमैन कॉमिक्स और फिल्मों का बेताज बादशाह बना रहा, जब तक कि बेटमैन और केप्टन अमेरिका सुपरहीरो के रूप में उसे चुनौती देने नहीं आ गए। सुपरमैन अकेला ऐसा चरित्र रहा है, जो पृथ्वी का नहीं है बल्कि एक अन्य ग्रह क्रेप्टन से आया है।  उसकी मज़बूरी है कि वह अपना असली रूप केवल अपराधियों से लड़ते समय ही दिखा सकता है, इसलिए उसे सामजिक जीवन में पत्रकार केंट क्लार्क का भेस धरना पड़ता है। सुपरमैन की बात इसलिए की जा रही है कि बहुत जल्द सुपरमैन सीरिज की नई फिल्म ' मैन आफ स्टील' प्रदर्शित होने वाली है। इसके प्रोमो में नज़र आ रहा है कि हमारे प्यारे नायक को सिरे से बदल दिया गया है।  पहले उसका सूट बहुत अलग ढंग का था लेकिन आज उसका सूट अत्याधुनिक हो गया है। हालाँकि ये बदलाव अच्छा लग रहा है। दरअसल इस बार वार्नर ब्रदर्स ने नए सुपरमैन को डीसी कामिक्स के सुपरमैन से  प्रेरित होकर बनाया है। इससे पहले 2006  में प्रदर्शित हुई 'सुपरमैन रिटर्न्स' एक ऐसे कोण पर समाप्त हुई थी, जहाँ से आगे कहानी का कोई सिरा नहीं निकाल जा सकता था। फिल्म ने दुनिया भर में बेहतरीन कमाई की लेकिन साथ ही साथ फिल्म निर्माताओं को ये आलोचना भी झेलनी पड़ी कि बच्चों का सुपरहीरो अब 'एडल्ट' हो गया है। दरअसल पिछली फिल्म में केंट क्लार्क और उसकी प्रेयसी के संबंधों से 'मिनी' सुपरमैन ने जन्म ले लिया था और ये बात दुनियाभर के अभिभावकों और फिल्म समालोचकों को नागवार गुजरी। काफी विचार विमर्श के बाद तय किया गया कि सुपरमैन को 'रिबूट' किया जाये, जैसा कि स्पाईडरमैन सीरिज के साथ किया गया। रिबूट याने कहानी को दुबारा नए अंदाज़ के साथ शुरू करना। रिबूट परंपरा भारतीय फिल्मों में अब तक देखने में नहीं आई है। हो सकता है 'कृष' के कई संस्करण बनाने के बाद राकेश रोशन फिर मूल कहानी पर लौटे और कृष के लिए नया चेहरा लेकर आये, ऐसा ' धूम' के साथ भी हो सकता है। फिल्म समालोचक जयप्रकाश चौकसे का मत है कि अमेरिका का इतिहास समृद्ध नहीं है और इसलिए उसे अपने 'बचपन' को प्रेरित करने के लिए ऐसे नायक गढ़ने पड़ते हैं। लेकिन पौराणिक नायकों की तो हमारे यहाँ भी कमी नहीं है तो फिर वेताल, चाचा चौधरी, साबू , ध्रुव के लिए स्वीकार्यता हमारे बच्चों में क्यों दिखाई देती है। कारण साफ़ है कि पौराणिक नायक मौजूदा दौर में अपनी प्रासंगिकता खो चुके हैं, शायद इसलिए किसी फिल्म में हमें भगत सिंह या चंद्रशेखर आज़ाद या कृष  तो प्रेरित करते हैं लेकिन  पौराणिक नायक नहीं। भारत का जन मानस अपने नायक चुनने के मामले में पूरी दुनिया से अलग ही दिखाई देता है। कभी अन्ना हजारे हमारे सुपर हीरो हो जाते हैं तो कभी सचिन अपनी अविश्वसनीय पारी से दुसरे लोक के होने का अहसास कराते हैं। दरअसल विश्व के सारे समाजों की सरंचना ही कुछ ऐसी है कि उन्हें अपने एक सुपरहीरो की दरकार होती है, आज भारत की जनता नरेन्द्र मोदी में अपना सुपरहीरो देख रही है। जल्द ही प्रदर्शित होने जा रही 'मैन ऑफ़ स्टील' में इस बार सुपरमैन का किरदार ब्रिटिश कलाकार हेनरी काविल को दिया गया है। निर्देशक जैक स्नेडर ने रिबूट करते हुए सुपरमैन के व्यक्तित्व में काफी नई बातें जोड़ी हैं, जैसे सुपरमैन के जन्म का नाम अब तक नहीं रखा गया था। सुपरमैन के बचपन का नाम है ' केल-ई ', जो बाद में केंट क्लार्क में बदल जाता है। हेनरी को इस किरदार के लिए रोज दो घंटे जिम में बिताने पड़ते थे और प्रोटीन पावडर लेने पड़ता था। उन्हें रोज 5000 कैलोरी की खुराक लेनी पड़ती थी। कुछ देशों में प्रदर्शित हो चुकी मैन ऑफ़ स्टील जल्द ही भारत में आ रही है और ये तय है कि ये पॉवर पैक्ड एंटरटेनमेंट  जबरदस्त दर्शक बटोरेगा। 



Monday, June 3, 2013

पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी

अभी दो दिन पहले हालीवुड अभिनेता विल स्मिथ की नई फिल्म ' आफ्टर  अर्थ' का प्रोमो देखा। कुछ रूचि जागी तो उसकी कहानी के बारे में जाना। ये सब करते हुए मन में कवि अटल बिहारी वाजपेयी की एक कविता की ये पंक्तिया उभरने लगी ' पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी, जीवन एक अनन्त कहानी'. पृथ्वी और मानव मेरी नज़र में अब भी बहुत रहस्यमयी और खोज के विषय हैं क्योकि इनके बारे में अब तक जो ज्ञान हमारे पास है, वो बहुत शैशव अवस्था में है। ' आफ्टर  अर्थ' की कहानी एक ऐसी सभ्यता की है, जो पृथ्वी छोड़ कर एक दुसरे ग्रह ' नोवा प्राइम' पर सर्वाइव कर रही है। पृथ्वी अब एक बेजान ग्रह है और बड़े ज्वालामुखी विस्फोटो और भूकम्पों ने इसे तबाह कर दिया है। लगभग एक हज़ार साल बाद बाप-बेटे की जोड़ी एक स्पेस शिप में अपने पुराने घर सौर मंडल से गुजर रहे हैं और एक दुर्घटना हो जाती है, मज़बूरी पिता-पुत्र को अंधकारमय पृथ्वी पर पहुंचा देती है। मेन इन ब्लैक सहित कई साइंस फिक्शन फिल्मों में काम कर चुके विल हमेशा ही इस तरह के विषयों की तलाश में रहते हैं। एक दिन घर पर आराम करते हुए वे डिस्कवरी चैनल पर ' आई शुड़ नॉट बी अलाइव' देख रहे थे। मौत को पछाड़ कर जीते साहसी लोगो की कहानियों पर आधारित शो में उस दिन एक ऐसे बाप बेटे की कहानी दिखाई जा रही थी, जिनकी कार दुर्घटनाग्रस्त होकर हज़ार फीट गहरी खाई में जा गिरी है। बाप बुरी तरह घायल है और चल नहीं सकता। ऐसे में पन्द्रह साल का बेटा हिम्मत दिखाकर पिता के लिए जीवन रक्षक की भूमिका निभाता है। इस सच्ची कहानी को देखते हुए ही विल के मन में ' आफ्टर अर्थ' के विचार ने जन्म लिया। उन्होंने इस कहानी को खूबसूरती के साथ एक विज्ञान कथा में बदल दिया। अब जरुरत थी ऐसे निर्देशक की, जो विल की कहानी को हुबहू परदे पर जिन्दा कर सके। विल ने इसके लिए भारतीय मूल के निर्देशक एम नाईट श्यामलन को चुन लिया। श्यामलन ने अपने करियर की शुरुआत एक एलियन फिल्म ' साइंस' से की थी। रहस्यमयी कहानियो को उनके मूल भाव में पेश करने में श्यामलन को महारत हासिल है। हालाँकि भारतीय मूल का होने के कारण उनकी काबिलियत को उतना सम्मान नहीं दिया जाता। श्यामलन के खाते में 'साइंस' के अलावा ' द विलेज' ,  हेप्पनिंग, द लास्ट एयर बेंडऱ जैसी बेहतरीन फिल्मे दर्ज हैं। देखना रोचक होगा कि  आफ्टर  अर्थ' को उन्होंने किस तरह परदे पर उतारा है। पृथ्वी और समूचे अनंत ब्रम्हांड के बारे में प्राचीन काल के लेखकों ने कई अद्भत जानकारिया दी हैं। जैसे पृथ्वी की अपनी बुद्धिमता है और उसकी ये इंटेलिजेंस मौसमों, फूलों, नदियों, पशु-पक्षियों में बखूबी दिखाई देती है। तीस के दशक में एक मशहूर गणितज्ञ ' जी डी आस्पेंसकी' ने बताया कि मानव सभ्यता को 'सुपर पावर' की ओर से एक नियत समय मिला है। इस नियत समय में हमें पृथ्वी से बाहर अपना ठिकाना ढूँढना ही होगा वर्ना पृथ्वी खुद ही हमारी सभ्यता का अंत कर देगी। यही बात लगभग पचास साल बाद महान वैज्ञानिक ' स्टीफन हाकिंग ने भी दोहराई है। उन्होंने भी दूसरा 'ठिकाना' खोजने पर बल दिया है। ये हम नहीं जान पाएंगे कि हमारे पास कितना वक्त है क्योकि वो बताने वाले लोग दुनिया की भीड़ में अदृश्य हो चुके हैं। आफ्टर अर्थ' को देखते हुए शायद  हम आज से पाच हज़ार  साल बाद की उस मानव सभ्यता का भाव महसूस कर सके जो शायद इसी तरह पृथ्वी को देखने आये। वे भविष्य में  अपने उन्नत स्पेस शिप में देखने आए कि उनके 'अल्प विकसित' पूर्वज यहाँ रहते थे। शायद वे उस हुमक को महसूस कर पाए, जो आज हमारे अन्दर किसी खेत, बरसात या झरने को देखकर खुद ही उठने लगती है. 




Sunday, June 2, 2013

क्रिकेट ने छोड़ दी आजादी की उम्मीद

नंदन वन के  निवासी क्रिकेट देखना बहुत पसंद करते थे और इसलिए वहां  के क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने अपने निवासियों के लिए नंदनवन प्रीमियर लीग शुरू किया। शुरुआत में तो एनपीएल जबरदस्त हिट रहा लेकिन अचानक एक बड़े खुलासे ने वन के निवासियों को दहला दिया। पता चला कि एनपीएल की एक टीम तेन्नै लोफर किंग्स का मालिक बुकीनाथ सटटपंम  नंदनवन के टीवी चेनलों में काम करने वाले चिंदु खाया सिंह के साथ मिलकर मेच फिक्स कर रहा है। और पता चला कि बोर्ड ऑफ़ कंट्रोल फॉर क्रिकेट इन नंदनवन (बीसीसीएन) का चीफ श्रीनिर्वासन बुकीनाथ का ससुर है। फिर तो क्या था वन के न्यूज़ चैनल श्रीनिर्वासन और बुकीनाथ की जड़े खोदने में लग गए। कुर्सी कमजोर है ये जान, बीसीसीएन का खजाना पूर्व में खाली कर चुके कुछ चोर अचानक हरकत में आ गए। वन के एक नेता नरक गंवार  ने सोचा, सही वक्त है अपने प्यादे को चीफ बनाने का। तुरंत उन्होंने टीवी चैनल को बयान दे डाला कि अब तो कुर्सी छोडो। क्रिकेट प्रेमियों को ऐसे बयान अपने जख्मो पर मरहम की तरह लग रहे थे। इस बीच वन की विरोधी राजनीतिक पार्टी नंदन जनता पार्टी ( नजपा ) के एक नेता तरुण केतली ने हुंकार भरी और वन की भोली-भाली जनता से वादा किया कि वे 24 घन्टे में श्रीनिर्वासन की कुर्सी लेकर रहेंगे। इस बीच श्रीनिर्वासन का मुंह ये बोलते-बोलते दुखने लगा था कि ' व्हाई शुड आय रिजाइन'. उधर ये खबर तेज़ी से वन में फैली कि वन के प्रधानमंत्री मौन चुपप्न सिंह बोल पड़े हैं। उन्होंने कहा ' खेल को बचाने की जरुरत है, जब तक जांच चले, कुछ कहना ठीक नहीं है। हमेशा की तरह उन्होंने ये नहीं बताया कि वे खुद क्या करेंगे। उधर टीम नंदन विदेश दौरे पर जा रही थी तब कुछ बदमाश ' इमानदार' किस्म के पत्रकारों ने टीम नंदन के कप्तान एडेंद्र सिंह पोनी से सवाल किये लेकिन पता चला कि पोनी केवल छह बार मुस्कुराए थे। क्रिकेट प्रेमी फिर उदास हो गए। फिर दुसरे दिन बीसीसीएन के संयुक्त सचिव मनुराग खागुर ने एक अर्जेंट बैठक बुलाई। अब सभी को भरोसा था कि श्रीनिर्वासन की कुर्सी अब जायेगी। मनुराग, तरुण केतली सभी ने कैमरों के सामने कहा कि श्रीनिर्वासन से इस्तीफा लेकर रहेंगे। मीटिंग शुरू हुई लेकिन बयानबाजी करने वाले मुंह मीटिंग में बंद ही रहे। जागरूक मीडिया बता रहा था कि श्रीनिर्वासन से किसी ने इस्तीफा नहीं माँगा। किसी को नहीं मालूम था कि इस मीटिंग समेत सारा खेल पहले ही फिक्स हो चुका है। इन सबमे एक बड़ा खिलाडी ठगसोहन  झोल्मिया शामिल हो चुका था। इस पर पहले भी भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके थे। पता चला  कि केतली चाहते हैं कि ठगसोहन ही श्रीनिर्वासन की कुर्सी संभाल सकता हैं। मीटिंग खत्म हुई और पता चला कि ' क्रिकेट' के हित में फैसला लिया गया है कि श्रीनिर्वासन इस्तीफा नहीं देंगे और ठगसोहन जांच पूरी होने तक अंतरिम अध्यक्ष बने रहेंगे। शाम ढल चुकी थी और नंदनवन में ऐसी मायूसी छाई थी जैसे पडोसी देश चन्दन वन से मैच हार कर टीम नंदन ने नाक कटा दी हो। एक क्रिकेट प्रेमी उदास सा क्रिकेट पिच की ओर  देख रहा था और क्रिकेट एक सटोरिये की जेब में पड़ा अपने आजाद होने की उम्मीद छोड़ चुका था।